Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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४२२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
व्यवहार सूत्र ३३, ७१६, १०/२६
जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग ६, पृ० २१५
८
१० चारित्र प्रकाश, पृ० ११५
११ प्रवचन सारोद्धार द्वार ६८, गाथा ५६६
10 10 10
१२ दशाश्रु त स्कंध ७| भगवती २१ समवायांग १२
१३
उत्तराध्ययन २६ । २६ से ३० प्रतिलेखना के २५ भेद अन्य प्रकार से भी हैं । नव अखोड़ा, नव पखोड़ा, ६ पुरिम,
१ पडिलेहणा - देखें जैन तत्त्व प्रकाश, प्रकरण ३ |
१४
स्थानांग १०
१५ समवायांग १७
१६ भगवती २५/७
१७ उत्तराध्यन १६
१८
१६
२०
२१
w
उत्तराध्यन ३०१८
प्रवचन सारोद्धार १४८, गाथा ६३४
स्थानांग ४
निमित्त के छः व आठ भेद । —स्थानांग ६ तथा ८ में देखें ।
काव्य के चार भेद स्थानांग ४ में देखें ।
२२
२३ स्थानांग सूत्र ५२, सूत्र ४३८
२४ स्थानांग सूत्र ७, सूत्र ५४४ २५ दशाश्र ुत स्कन्ध चोथीदशा
२६
स्थानांग सूत्र ३।४।३२३ की वृत्ति २७ अनुयोगद्वार सूत्र १६
२५
अमितगति श्रावकाचार १-४
सुह- दुक्खसहियं, कम्मखेत्तं कसन्ति जे जम्हा । कलुसंति जं च जीवं, तेण कसायत्ति वुच्चति ॥ -- प्रज्ञापनापद १३, टीका
सुख-दुःख के फलयोग्य -- ऐसे कर्मक्षेत्र का जो कर्षण करता है, और जो जीव को कलुषित करता है, उसे कषाय कहते हैं ।
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