Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन परम्परा : एक ऐतिहासिक यात्रा | ५०१
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पहली बार पूछा वहीं 'वैश्यायन' नामक तापस तप कर रहा था। उसकी जटाओं में 'जुएं' थीं, गोशालक ने उसे कई बार 'जूओं का बिछौना' कह-कहकर चिढ़ाने का प्रयास किया, कई बार तो तापस सह गया किन्तु जब वह अधिक सताया गया तो, क्रोधित हो उठा और अपनी लब्धि का प्रयोग करते हुए 'उग्रतेजोलेश्या' (आग्नेय दृष्टि) का गोशालक पर प्रहार कर दिया। गोशालक एक भयंकर तेज को अपनी तरफ लपकते देख कांप उठा और दौड़कर भगवान के चरणों में चला गया । प्रभु गोशालक की भयातुर मुद्रा को देखकर अनुकम्पा से द्रवित हो उठे। उन्होंने शीतलेश्या (अमृतमय शीतल दृष्टि) का प्रयोग कर तेजोलेश्या को निष्प्रभ कर दी।
यह देख, तापस प्रभु के आध्यात्मिक प्रभाव से बड़ा प्रभावित हुआ। यह भी सहना पड़ा
एक बार प्रभु वैशाली से वाणिय ग्राम पधार रहे थे, मार्ग में गंडकी नदी नाव से पार करनी पड़ी।
नाव से उतरने पर नाविक ने किराया मांगा किन्तु प्रभु मौन रहे। उनके पास देने को कुछ था भी नहीं, नाविक ने प्रभु को तपती 'रेत' में खड़ा कर दिया, संयोगवश चित्र नामक राजकुमार वहाँ आ पहुंचा और प्रभु को नाविक के बंधन से मुक्त किया। एक श्रावक का निर्णय
भगवान पार्श्वनाथ का श्रावक था, आनंद । बड़ा तपस्वी, बेले-बेले पारणा करता था, आतापना लेता था, उससे अवधिज्ञान भी प्राप्त था, उसने भगवान महावीर के सुदृढ़ आत्मबल तथा उत्कृष्ट तपाराधना को देखकर उसने प्रभु से कहा-प्रभु, आपको शीघ्र ही केवलज्ञान की उपलब्धि होगी। यह घटना वाणिज्य ग्राम की है। संगम का पराजय
कष्टजयी भगवान महावीर अपने साधनाकाल में सुमेरु से स्थिर थे । प्रायः प्रभु की सहनशीलता की देवराज इन्द्र प्रशंसा किया ही करते जिसका प्रायः सभी देव समर्थन करते, किन्तु एक संगम नामक देव को किसी मानव की यों प्रशंसा की जाय, अच्छी नहीं लगी। वह इन्द्र के द्वारा की गई प्रशंसा को समाप्त करने को प्रभु को अपने साधना-पथ से विचलित करने का निश्चय किया और पंडाल नामक उद्यान में जहाँ प्रभु ध्यानस्थ थे उपस्थित हुआ और उन्हें कई भयंकर उपसर्ग देकर विचलित करना चाहा ।
उसने उस रात में प्रभु को बीस भयंकर कष्ट दिये(१) पिशाच बनकर प्रभु को डराया। (२) भयंकर धूल वर्षा की। (३) चींटियाँ बन तन को काटा । (४) डांस मच्छर बनकर खून चूसा । (५) दीमक बनकर रोम-रोम छेदा । (६) बिच्छु बनकर डक लगाए । (७) सर्प बनकर डसा । (८) नेवला बनकर नोंचा। (९) चूहे बनकर तन को कुतरा । (१०) हाथी बन तन को रोंधा। (११) हथिनी बनकर शूल चुभोए । (१२) बाघ बनकर पंजे लगाये । (१३) माता-पिता बनकर करुण विलाप किया। (१४) पांवों में आग जलाई । (१५) शरीर पर पक्षी बन चोंचें लगाई। (१६) आँधी चलाकर उड़ाने का प्रयास किया।