Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज के
नित्य स्मरणीय पद
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अरिहंत जप्यां से ती अष्ट कर्म विनास होय ३. संसार भावना-शालभद्रजी
सिद्धजी के जप्या सेथी सिद्ध पद पाइये। ४. एकत्व भावना-नमीराज रिषी आचारज जप्या सेथी आत्मस्वरूप दीसे
५. अन्यत्व भावना-मृगापुत्र जी उपाध्याय जप्यां सेथी उंच पद पाइये ।
६. अशुचि भावना-सनतकुमार चक्रवर्ती साधुजी के जप्या शिव मार्ग बताय देत
७. आश्रव भावना-हरकेशी मुनि इहलोक परलोक अति सुखदाई है। कहत विनोदीलाल जपो नवकार माल
८. संवर भावना-समुद्रपालजी जाके जाप जप्यां सेथी सदा सुख पाइये ॥१॥
8. निर्जरा भावना-अर्जुनमाली
१०. लोक स्वरूप भावना-संयत्ती राजा सोले सुख
११. बोधि भावना-आदिनाथ के ९८ पुत्र १ सुख-काया नीरोग, २ सुख-घर में नई सोग, १२. धर्म भावना-धर्मरुचिजी ३ सुख-गुणवंता साथ, ४ सुख-स्त्री हात, ५ सुख-माथे नई देणो, ६ सुख-धर्मीतणो, वह दिन मेरा कल्याणकारी होगा जिस दिन ७ सुख-निरभय स्थान, ८ सुख-जाणे नई गाँव, ऐसी भावना आएगी। धन्य है उन पूरुषों को जिन्होंने ६ सुख-मीठो नीर, १० सुख-पंडित सीर, ऐसी भावना बनाई है। ११ सुख-पोषधशाला, १२ सुख-चित्त विसाला, १३ सुख-पूत सपुता, १४ सुख-घर विभूता,
१. क्रोध क्षय हो, क्षमा गुण प्रगट हो। १५ सुख-केवलज्ञान, १६ सुख-पहुँचा निरवाण, २. मान क्षय हो, विनय गुण प्रगट हो। वा पुरुषां ने धन्य है जिन्होंने १५वां १६वां सुख ३. माया क्षय हो, सरलता प्रगट हो। प्राप्त किया है, वो दिन मेरा धन्य हो जिस दिन
४. लोभ क्षय हो, संतोष प्रगट हो। .१५ वां १६ वां सुख की प्राप्ति हो।
५. अज्ञान क्षय हो, ज्ञान प्रगट हो। १२ भावना
उन पुरुषों को धन्य है, जिन्होंने इन दुर्गुणों को १. पहली अनित्य भावना-माता मोरू देवी नष्ट किया। वह दिन मेरा परम कल्याणकारी हो २. अशरण भावना-अनाथी मुनि
जिस दिन मेरे ये पाँच दुर्गुण नष्ट हों।