Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५३८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
स्तवन : १ साता कीजो जी,
श्री सतीनाथ प्रभु शिव सुख दीजो जी || टेर || सान्तिनाथ है नाम आपको सबने साताकारी जी । तीन भवन में चावा प्रभुजी मृगी नीवारी जी ॥१॥ आप सरीखा देव जगत में ओर नजर नहिं आवे जी । त्यागी ने वीतरागी मोटा मुज मन भावेजी ॥२॥ शान्ति जाप मन मांही जपता चावे सो फल पावे जी । ताव तीजा से दुख दारीदर सब मिट जावे जी ॥ ३ ॥ विश्वसेन राजाजी के नंदन अचलादे राणी जायाजी । चोथमल कहे गुरू प्रसादे म्हांने घणा सुवाया जी ॥४॥
स्तवन : २
भजो जी शांतिनाथ ने काया ना मिट जा दुःखो |टेर || विश्वसेन राजा अचलादे माता जिनकी आया कुखो। था मृगी का रोग देस में सभी मिटाया दुःखो ॥१॥ चवदे सपना देखी मेट गयो सब दुःखो। लड़का जाया जगत रोसनी देख रहे सब मुखो || २ || देवलोक में इन्द्र गावे सृष्टि पड़े मन को । मंगलाचार करे नर नारी बोल रहे सब मुखो || ३ || सतीया वरती बीच जगत में पुरा रहे सुखो । आदर भाव घरा सेडु जे जे बोलो मुखो ॥४॥ दानशील तप भावना भावो जिणसे पावो सुखो । कर्म खपाई मोक्ष पहुता मेट गयो सब दुखो || ५ ||
स्तवन : ३
जो आनंद मंगल चावो रे मनावो महावीर ॥ टेर || प्रभु त्रीसलाजी के जाया हे कंचन वरणी काया । जाके चरणां शीश नमावो रे ॥ १ ॥
प्रभु अनंत ज्ञान गुणधारी हे सूरत मोहनगारी । थे दर्शन कर सुख पावो रे || २ ||
या प्रभुजी की मीठी वाणी है, अनंत सुखों की दानी । थे धार-धार तिर जावो रे ॥३॥
जाके शिष्य बड़ा है नामी सदा सेवो गोतम स्वामी । जो रिद्ध सिद्ध थे पावो रे ॥४॥
थारा विधन सभी टल जावे मनवांछित सुख पावे । थारा आवागमन मिटावे रे || ५ ||
ये साल उगणीयासी भाई देवास सेर के माई । कहे चोथमल गुण गावो रे ॥६॥
स्तवन : ४
मती भूलो कदा रे मती भूलो कदा,
वीर प्रभु का गुण गावो सदा ||टेर ||
जो जो रे भगवंत भाव किया,
गणधर सूत्र में गूंथ लिया ॥ १ ॥
परभुजी री वाणी रो आज आधार
तुरंत
मुनि
सुण सफल करो अवतार ||२||
जल सु न्हांयां रे तन मेल हटे,
प्रभुजी री वाणी सुणिया सब पाप कटे ||३|| सब विपत टले, फुरंत
जिहाँ तहाँ वंछित आस फले ॥४॥ दियो, जी हुकम
जद रावल पिंडी चोमास कियो ॥ ५॥
नंदलाल
स्तवन : ५
सदा
जय हो सदा जय हो,
श्री महावीरस्वामी की, सदा जय हो ॥टेर ॥ पतितपावन जिनेश्वर की,
सदा जय हो सदा जय हो |टेर ॥ तुम्हीं हो देव देवन के तुम्हीं हो पीर पैगम्बर । तुम्हीं ब्रह्मा तुम्हीं विष्णु ॥ | १ || सदा ..... तुम्हारे ज्ञान खजाने की महिमा बहुत भारी है। लुटाने से बढ़े हरदम ||२|| सदा ..... तुम्हारी ध्यान मुद्रा से अलौकिक शांति झरती है ॥ सिंह भी गोद पर सोते ॥ ३॥ सदा... तुम्हारा नाम लेने से जागती वीरता भारी । हटाते कर्म लश्कर को || ४ || सदा... तुम्हारा संघ सदा जय हो मुनि मोतीलाल सदा जय हो मुनि दल सारे की, सदा जय हो ॥५॥
एह प्रत
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