Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५१८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
वह कुछ देर ऐसे ही विचारों में खो गया कि अचानक उसे अपनी सुधि आई। उसके पाँच सौ साथी चिपके हुए हैं उसे तो तत्काल इसका कोई समाधान ढूँढ़ना है ।
उसे समझते देर नहीं लगी कि सारा चमत्कार इस दिव्य पुरुष जम्बू का ही हो सकता है ।
उसने हिम्मत कर आगे पांव बढ़ाया और कहा-जम्बू !
अचानक एक नये स्वर के गूंजने से वातावरण में एक चौकन्नापन आ गया किन्तु जम्बू घबराये नहीं उन्होंने आगन्तुक को निर्भयता पूर्वक अपने निकट आने का संकेत करते हुए रात्रि में उस भवन में आ पहुँचने का प्रयोजन पूछा । अपनी सारी स्थिति स्पष्ट बताते हुए प्रभव ने विनयपूर्वक आग्रह रखा कि जम्बू ! मुझसे स्वापिनी और तालोदघाटिनी विद्या लेकर स्तम्भनी और विमोचिनी ये दो विद्याएँ दो। हम तुम से बड़े उपकृत होंगे ।
प्रव्रजित होने वाला हूँ मुझे इन
जम्बू ने कहा - प्रभव ! मैं तो इस सारे वैभव का परित्याग कर कल ही विद्याओं की कोई स्पृहा नहीं है । आत्म कल्याण के पथिक को इनसे प्रयोजन ही क्या ?
प्रभव यह सुनकर चकित होता हुआ जम्बू को प्राप्त भोगोपभोग का उपभोग करने का आग्रह करने लगा, किन्तु जम्बू ने सुयुक्तियों के द्वारा प्रभव को ऐसा सद्बोध दिया कि वह स्वयं वैराग्यभाव में झूमने लगा । उसने यावज्जीवन स्तेय-कर्म का वहीं परित्याग कर दिया, तत्काल उसके साथी भी अनायास मुक्त हो गये। सभी जम्बू के सामने उपस्थित हुए ।
श्री जम्बू ने सभी को प्रतिबोधित किया । अनमोल तत्त्व मार्ग को समझ सभी ने जम्बू के साथ संयम लेने का
निश्चय किया ।
आठ कामनियाँ जो जम्बू को विकार मार्ग में प्रवृत्त करने को समुद्यत थीं। श्री जम्बू के सातिशय तत्त्वोपदेश से प्रबोधित हो, संयम मार्ग को स्वीकार करने को तत्पर हो गई ।
सम्पूर्ण वातावरण में एक वैराग्य रस की लहर छा गई। जम्बूकुमार के अद्भुत वैराग्य को धन्य है जिसने वैकारिक तम सम्पूर्ण वातावरण में विराग का जगमगाता सूर्य चमका दिया।
श्री जम्बू की इस महान सफलता से उसके माता-पिता भी कम प्रभावित नहीं हुए, जब आठों बालाओं के माता-पिताओं को भी यह सारा वृत ज्ञात हुआ तो उन्होंने भी जम्बूजी के साथ ही संयम लेने का निश्चय कर लिया । इस तरह वैराग्य भाष्कर श्री जम्बू जी ने ५२७ व्यक्तियों सहित परमोज्ज्वल संयम मार्ग को स्वीकार किया ।
'तिष्णाणं तारयाणं' अर्थात् तिरने और तिराने वाले का ऐसा अद्भुत उदाहरण अन्यत्र मिल पाना कठिन है ।
अन्तिम केवली
परम श्रेष्ठ वीतराग भाव मंडित पूज्य श्री जम्बू स्वामी जिस प्रकर्ष वैराग्य से दीक्षित हुए संयमी जीवन भी उनका उससे भी कहीं अधिक वैराग्यपूर्ण रहा ।
श्रेष्ठतम आत्म-साधना में तल्लीन रहते हुए श्री जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मास्वामी से अनेक बार तात्त्विक पृच्छाएँ कीं जिसके फलस्वरूप कई शास्त्र प्रकाश में आये ।
श्री जम्बूस्वामी वीर निर्वाण संवत् २० में श्री सुधर्मा स्वामी के निर्वाण होने पर भगवान महावीर के द्वितीय पट्टधर हुए। उन्हीं दिनों श्री जम्बू स्वामी को केवलज्ञान भी प्रकट हुआ । भरत क्षेत्र के इस काल के ये अन्तिम केवली थे । ४४ वर्ष केवल पर्याय से प्रदीप्त होते हुए संघ संचालन करते रहे।
वीर निर्वाण ६४ वर्ष में श्री जम्बू स्वामी का परिनिर्वाण सम्पन्न हुआ । १६ वर्ष की उम्र में संयमी हुए। इस तरह श्री जम्बूस्वामी का ८० वर्ष का कुल आयुष्य था । श्री जम्बु स्वामी के निर्वाण होने के साथ ही भरत क्षेत्र से निम्नांकित १० बोल विच्छेद हुए ।
(१) मन पर्यवज्ञान, (२) परमावधिज्ञान, (३) पुलाक लब्धि (४) आहारक शरीर, (६) उपशम श्रेणि, (७) जिनकल्प, (८) परिहार विशुद्ध, सूक्ष्मसंपराय, यथाख्यात ये तीन चारित्र (१०) मुक्तिगमन |
काठ
(५) क्षपक श्र ेणी,
( 8 ) केवलज्ञान
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