Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन संस्कृति के प्रमुख पर्वो का विवेचन | ४७६
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निर्वाण पर्व-दीपावली
यों पंचकल्याणकों में निर्वाण पर्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है । सभी तीर्थकरों के निर्वाण महोत्सव तप त्यागादि की आराधना से मनाये जाते हैं, पर विशेष उल्लास और उत्साह से चरम तीर्थंकर महावीर का निर्वाण पर्व मनाया जाता है । भारत में दीपावली कई संस्कृतियों की ऐतिहासिक विरासत की देन है। जैन दृष्टि से इस पर्व का शुभारम्भ भगवान महावीर की देह-मुक्ति से हुआ है।
राजगृही का ४१वां वर्षावास कर तीर्थकर महावीर मल्लों की राजधानी अपापापुरी (पावापुरी) में राजा हस्तिपाल की लेखशाला में पधारे । छट्टतप युक्त प्रभु ने अपना निर्वाण समीप देखकर पंचावन अध्ययन पुण्यफल विपाक के और पंचावन अध्ययन पापफल विपाक के कहे ७, फिर छत्तीस अध्ययनों का अमृतमय उपदेश 'उत्तराध्यन' प्रदान किया ८ निर्वाण समय समीप जान तथा गौतम के सर्वज्ञत्व में स्नेह को बाधक जान प्रभु ने गौतम को समीप के गाँव में देवशर्मा को प्रतिबोध देने भेजा१६, विनयावनत गौतम प्रभु को वन्दना कर प्रस्थित हुए। निर्वाण के समय प्रभु से इन्द्र ने निवेदन किया कि भस्मग्रह संक्रमण तक आयुष्य को रोक लें, तो प्रभु ने कहा कि आयु को बढ़ाने-घटाने की सामर्थ्य किसी में नहीं है। कार्तिक कृष्णा अमावस्या की रात्रि के अन्तिम प्रहर में प्रभु संसार त्याग कर चले गये, सभी बन्धन नष्ट हो गये, सब दुःखों का अन्त कर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए । २०
निर्वाण हुआ जान स्वर्ग से देवी, देवता शक्र और इन्द्र वहाँ आए । सभी देवों ने अपनी-अपनी सामर्थ्य और गुणों के अनुरूप अन्तिम क्रिया में योग दिया । रज्जुग सभा में काशी कौशल के नौ लिच्छवी तथा नौ मल्ल इस तरह अठारह गण राजा भी उपस्थित थे। अठारह ही राजाओं ने उपवास युक्त पौषध किया हुआ था । अमावस्या की घोरकाली रात्रि थी अतः उन्होंने निश्चय किया कि प्रभु के निर्वाणान्तर भाव उद्योत के उठ जाने से महावीर के ज्ञान के प्रतीक रूप में स्मरणार्थ द्रव्य प्रकाश करेंगे।"
जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर काल धर्म को प्राप्त हुए, उस रात्रि में बहुत-सी देव-देवियाँ ऊपरनीचे आ-जा रही थीं जिससे वह रात्रि खूब उद्योतमयी हो गई थी।२२
उस दिन देवताओं ने दुर्लभ रत्नों से द्रव्य प्रकाश किया था, मनुष्यों ने भी दीप संजोए तब से दीपावली पर्व प्रारम्भ हुआ। हरिवंश पुराण में आचार्य जिनसेन ने दीपावली के प्रारम्भ का बड़ा भावमय वर्णन दिया है
ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया, सुरासुरैः दीपितया प्रदीप्तया । तदास्म पावानगरी समन्तत: प्रदीपिता काशतला प्रकाशते ।। ततस्तु लोकः प्रतिवर्षमादरात् प्रसिद्ध दीपावलीकयात्र भारते ।
समुद्यतः पूजयति जिनेश्वरं जिनेन्द्रनिर्वाण विभूति-भक्ति भाग ।।
-प्रस्तुत श्लोक में दीपावली का समग्र दृश्य सार संक्षेप रूप से वर्णन किया गया है । ऐसा ही वर्णन त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र में प्राप्त होता है ।
परिनिर्वाण वि० पू० ४७१ तथा ई० पू० ५२७ माना जाता है । महावीर निर्वाण के १६६६ वर्ष बाद कुमारपाल का जन्म हुआ था, ई०११४२ में । अत: महावीर का निर्वाण काल १६६६-११४२=५२७ ई०पू०है। कुछ विद्वान् ४६८ और ४८२ तथा ५२७ और ५४६ ई०पू० के बीच निर्वाणकाल मानते हैं किन्तु परम्परानुसार महावीर का निर्वाण ५२७ ई०पू० माना जाता हैं "प्रोफेसर परशुराम कृष्ण गोडे, ओरिएन्ट रिसर्च, भगवान महावीर का निर्वाण दीपावली के रूप में होना स्वीकार करते हैं, महावीर का सदैव के लिए शरीर का त्याग होने से इसे कालरात्रि कहते हैं । इस उपलक्ष में तत्कालीन नरेश और श्रेष्ठीमंडल ने नया संवत प्रारम्भ किया और पुण्य-पाप के लेखे-जोखे की तरह हानि-लाभ का लेखा-जोखा रखा जाने लगा। दिगम्बर जैनाचार्य जिनसेन ने हरिवंश पुराण में ७५३ ई० में, सर्ग ६६, श्लोक १५, १६..."२० में, उत्तर पुराण (गुणभद्र) के १६वें सर्ग में, सोमदेव सूरि के यशस्तिलक चम्पू में, अब्दुल रहमान ने (११०० ई० में) संदेश रसिक में, अकबर ने नौवें रत्न अबुल फजल ने आइने अकबरी में (१५६०),
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