Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
४१८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
००००००००००००
००००००००००००
राज
SO..
कसौटी पर कसा जाता है । यदि अयोग्य व्यक्ति किसी पद पर आसीन हो जाता है तो वह अपना तो गौरव घटायेगा ही, किन्तु उस पद का और उस संघ या शासन का भी गौरव मलिन कर देगा। इसलिए जैन मनीषियों ने उपाध्याय पद की योग्यता पर विचार करते हुए कहा है।
कम से कम तीन वर्ष का दीक्षित हो, आचार कल्प (आचारांग व निशीथ) का ज्ञाता हो, आचार में कुशल तथा स्व-समय पर-समय का वेत्ता हो, एवं व्यञ्जनजात (उपस्थ व काँख में रोम आये हुए) हो ।
दीक्षा और ज्ञान की यह न्यूनतम योग्यता जिस व्यक्ति में नहीं, वह उपाध्याय पद पर आरूढ़ नहीं हो सकता। पच्चीस-गुण
इसके बाद २५ गुणों से युक्त होना आवश्यक है । पच्चीस गुणों की गणना में दो प्रकार की पद्धति मिलती है । एक पद्धति में पचीस गुण इस प्रकार हैं-११ अंग, १२ उपांग, १ करणगुण १ चरण गुण सम्पन्न-=२५ ।।
दूसरी गणना के अनुसार २५ गुण निम्न हैं१२, द्वादशांगी का वेत्ता-आचारांग आदि १२ अंगों का पूरा रहस्यवेत्ता हो । १३. करण गुण सम्पन्न-पिण्ड विशुद्धि =आदि के सत्तरकरण गुणों से युक्त हो । १४. चरणगुण सम्पन्न-५ महाव्रत श्रमण धर्म आदि सत्तरचरण गुणों से सम्पन्न हो । १५-२२, आठ प्रकार की प्रभावना के प्रभावक गुण से युक्त हो । २३, मन योग को वश में करने वाले । २४, वचन योग को वश में करने वाले ।
२५, काययोग को वश में करने वाले ।१० बारह अंग १. आचारांग
२. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग
समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति
ज्ञाता धर्मकथा ७. उपासक दशा
८. अन्तगड दशा ६. अणुत्तरोववाइय दशा
१०. प्रश्न व्याकरण ११. विपाकश्रुत
१२. दृष्टिवाद उपाध्याय इन बारह अंगों का जानकार होना चाहिए। करण-सत्तरी
१३-करण सत्तरी-करण का अर्थ है-आवश्यकता उपस्थित होने पर जिस आचार का पालन किया जाता हो वह आचार विषयक नियम । इसके सत्तर बोल निम्न हैं
पिंड विसोही समिइ भावण पडिमा य इंदिय निरोहो,
पडिलेहण गुत्तीओ अभिग्गहा चेव करणं तु ।११ ४ चार प्रकार की पिण्ड विशुद्धि
(१) शुद्ध आहार, (२) शुद्ध पात्र, (३) शुद्ध वस्त्र, (४) शुद्ध शय्या । इनकी शुद्धि का विचार ४२ दोषों का वर्जन ।
५-६, इर्यासमिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान मांडमात्र निक्षेपणा समिति, उच्चार प्रस्रवण समिति । इन पाँच समिति का पालन करना ।
१०-२१, अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अत्यत्व, अशौच, आस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म, लोक, बौधिदुर्लभ । इन बारह भावनाओं का अनुचिन्तन करना।
PARO
Beho
AADOO
200
O000
ameducationainternational
FORimate-Dereone
inelibrariam