Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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३६६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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१. मदिरा-पान । २. सन्ध्या के समय चौरस्ते पर घूमना । ३. नृत्य, खेल-तमाशा आदि देखना । ४. ध त-क्रीडा करना। ५. दुष्ट से मित्रता करना । ६. आलस्य-रत रहना ।
इन्हें अपाय-सुख कहने के पीछे यह माव रहा है कि बाह्य दृष्टि से ये सुख प्रतीत होते हैं किन्तु इनका परिणाम भीषण दुःख है।
इनके सम्बन्ध में उपदेश किया गया है कि आर्य श्रावक या उपासक इन चौदह (चार कर्म-क्लेश, चार पाप-. स्थान तथा छः अपाय सुख =चौदह) प्रकार से होने वाले पापों से बचे । ऐसा करने वाला लोक और परलोक दोनों को जीत लेता है। करुणा पर विशेष बल
उपासक के लिए बौद्ध धर्म में करुणा या दया पर बहुत जोर दिया गया है । आर्य उपासक को इतना करुणाशील होना चाहिए कि उसे अपने-पराये का भान तक न रहे ।
करुणा के तीन प्रकार बताये गये हैं१. स्वार्थमूला करुणा-जैसे माता की पुत्र के प्रति । २. सहतुकी करुणा-किसी को कष्ट में देखा, हृदय द्रवित हुआ, करुणा-भाव जागा, इस कोटि की।
३. अहेतुकी करुणा-बिना स्वार्थ, बिना कारण तथा पात्र, अपात्र के भेद के बिना प्राणी मात्र के प्रति होने वाली।
अहेतुकी करुणा को 'महाकरुणा' कहा जाता है। बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय में इसका बहुत विकास हुआ। ईसाई धर्म में साधक के वर्ग
ईसाई धर्म का मुख्य आधार प्रेम व दया है। मुख्यतः वही भगवान की प्राप्ति का माध्यम है। उसी से ईसाई धर्म में सेवा-भाव का विकास हुआ, जिसका संसार में अपना अद्वितीय स्थान है।
ईसाई धर्म में प्रारम्भ से ही साधकों की दो श्रेणियाँ चली आती हैं । एक वह है, जो धर्म की शिक्षा और प्रेरणा देती है, सांसारिक जीवन से पृथक् रहती है, जिसे भारतीय धर्मों की परिभाषा में संन्यासी या साधु कह सकते हैं । दूसरी श्रेणी जन-साधारण या नागरिक अनुयायियों की है, जो गृहस्थ या पारिवारिक जीवन जीते हैं। त्यागी वर्ग के पुरुष फादर (Fathers) कहे जाते हैं और स्त्रियाँ नन (Nuns)। सादा और सरल जीवन जीते हुए, धर्म-प्रसार करते हुए जन-जन की सेवा में लगे रहना, उस ओर अपने अनुयायियों को प्रेरित करना उनका मुख्य कार्य है। उनके दैनन्दिन जीवन-व्यवहार के सन्दर्भ में अपनी आचार-संहिता है ।
ईसाई-धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं-रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट । रोमन कैथोलिक प्राचीन है, प्रोटेस्टैन्ट पश्चाद्वर्ती । रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय में यह त्यागी वर्ग-फादर्स व नन्स अविवाहित रहते हैं। उनके किसी प्रकार का गृहस्थ-सम्बन्धी लगाव नहीं होता । प्रोटेस्टैन्ट सम्प्रदाय में उन्हें (Fathers, nuns को) विवाह की सुविधा है । गृहस्थ अनुयायी
गृहस्थ अनुयायियों के लिए ईसाई धर्म में अध्यात्म-साधना का कोई विशेष सूक्ष्म अभ्यास-क्रम नहीं मिलता। ईश्वर की प्रार्थना में वे विश्वास करते हैं। सप्ताह के सात दिनों में एक-रविवार का दिन इसके लिए विशेषतः निर्धारित है।
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