Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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३१४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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शान्तितीर्थ में मुक्ति स्नान
सोमदेव के तीन प्रश्न१. आपका नद कौन-सा है? २. आपका शान्तितीर्थ कौन सा है ? ३. आप कहां स्नान करके कर्मरज धोते हैं ? मुनि हरिकेशबल के क्रमशः उत्तर१. सरल आत्मा के प्रशान्त परिणाम वाला धर्म मेरा नद है। २. ब्रह्मचर्य मेरा शान्तितीर्थ है। ३. उसमें स्नान करके मैं विमल-विशुद्ध होकर मुक्ति को प्राप्त करूंगा।
अनेक महर्षि इस शान्तितीर्थ में स्नान करके उत्तम स्थान (मुक्ति) को प्राप्त हुए हैं। मानव-सेवा से मुक्ति
अज्ञान मिटाने के लिए जन-जन में ज्ञान का प्रचार करने से, मोह मिटाकर प्रेम बढ़ाने से और राग-द्वेष का क्षय करने से एकान्त सुखमय मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
गुरुजनों और वृद्धों की सेवा करने से, अज्ञानियों का संसर्ग न करने से, स्वाध्याय एकान्तवास एवं सूत्रार्थ का चिन्तन करने से तथा धैर्य रखने से मुक्ति की प्राप्ति होती है। मानव देह से मुक्ति
केशीमुनि-महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका तीव्र गति से चली जा रही है। गौतम ! तुम उस पर आरूढ़ हो । उस पार कैसे पहुँचोगे?
गौतम-जो सछिद्र नौका होती है वह उस पार नहीं पहुंचती है। किन्तु जो सछिद्र नौका नहीं होती वह उस पार पहुंच जाती है।
केशी-गौतम ? नौका किसे कहते हो? - गौतम- शरीर को नौका, जीव को नाविक और संसार को समुद्र कहा गया है। महर्षि उसे पार कर मुक्ति पहुँचते हैं । १०० दुर्लभ चतुरंग और मुक्ति
मनुष्यत्व, धर्मश्रवण, श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थ । ये चार अंग प्राणियों के लिए दुर्लभ हैं ।
यह जीव स्वकृत कर्मों से कभी देवलोक में, कभी नरक और कभी तिर्यंच में जन्म लेता है। काल क्रम से कर्मों का अंशतः क्षय होने पर यह जीवात्मा मनुष्यत्व को प्राप्त होता है।
मनुष्य शरीर प्राप्त होने पर भी धर्म का श्रवण दुर्लभ है।। कदाचित् धर्म का श्रवण हो भी जाए फिर भी उस पर श्रद्धा का होना परम दुर्लभ है। श्रुति और श्रद्धा प्राप्त करके भी संयम में पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है।
मनुष्यत्व प्राप्त कर जो धर्म को सुनता है, उसमें श्रद्धा करता है वह तपस्वी संयम में पुरुषार्थ कर संवृत होता है और कर्मरज को दूर कर निर्वाण (मुक्ति) को प्राप्त होता है ।१०१ मुक्ति पथ के पथिक
(१) अरिहन्त भगवान के गुणों की स्तुति एवं विनय-भक्ति करने वाले । (२) सिद्ध भगवान के गुणगान करने वाले । (३) जिन प्रवचन के अनुसार आराधना करने वाले । (४) गुणवन्त गुरु का सत्कार-सम्मान करने वाले ।
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