Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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0 तरुण तपस्वी अभय मुनि
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श्री अम्ब मुक्ताष्टक
एक
[१] जीवन सुमन सुहाना है ये, अम्ब मुनि सुरभित होता। मेवाड़ धरा का हर जन मानव, देख-देख हर्षित होता ।।
[२] संस्कार मिले हैं मात-पिता से, जो आगे वृद्धि पाये। महा प्रतापी “भारमुनि जी", सच्चे गुरु को तुम पाये ।।
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बचपन से ही शास्त्र ज्ञान से, समुज्ज्वल प्रकाश किया। चमक रहे मेवाड़ धरा में, सत्यं-शिवं विकास किया ।
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संयम में रत रहते मुनिश्वर, वर्ष पचास किये पूरे । प्रवर्तक हैं आप गुणिवर, धर्म वीर अरु हैं शूरे॥
तपोधनी हैं जैन जगत की, सच में विरल-विभूति हैं। मधुर गिरा है प्रसन्न आनन, ब्रह्मचर्य मय ज्योति हैं।
[६] सरल हृदय, संगठन की मुनिवर सतत भावना रखते हैं। ज्ञान-भक्ति की अविरल साधना, निर्मल करते रहते हैं।
मिलनसार है, रुचिशील, स्वाध्यायी, संघ के संचालक । दीप्तिमान रहो सदा तुम, श्रमण याम के हो पालक ।
[८] इन शब्दों से सुखद कामना, करते हैं हर्षित शतवार । 'अभय' बने मेवाड़ शिरोमणि, धन्य-धन्य अम्बा अणगार ।।
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