Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२६४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज — अभिनन्दन ग्रन्थ
विवेचन—यहाँ वेदना का स्वामी कौन है, इस अधिकार का कथन किया गया है। वेदना का स्वामी जीव
है और नोजीव (पुद्गलमय शरीर ) है । इन दोनों के एक और बहुत संख्या के संयोग रूप अनेक भेद प्रकार वेदना के स्वामी के बनते हैं । स्वामित्व का भेदरूप अनेक बोधकारी कथन नैगम नय है । ये ही भेदरूप कथन जब प्राणी पर उपचरित होते हैं, व्यवहुत होते हैं तब व्यवहार नय के विषय बन जाते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वेदना का स्वामी जीव है या नोजीव है। यह कथन संग्रह नय का है ।
ऋजुसूत्र नय से वेदना का स्वामी वह जीव है, जिस जीव को वह वेदना हो रही है। अनेक जीवों की वेदना मिलकर एक नहीं होती है । अतः ऋजुसूत्र नय में अनेक जीव या नोजीव वेदना के स्वामी नहीं होते हैं। कारण कि ऋजुसूत्र नय में यथाभूत रूप कथन ही अपेक्षित होता है। शब्द नय में शब्दार्थ की प्रधानता होती है। अतः इस नय से वेदना शब्द का अर्थ वेदन करना होता है और वेदन प्रत्येक जीव अलग-अलग करता है। नोजीव शरीरादि वेदन नहीं करते हैं और न अनेक जीव सम्मिलित वेदना का अनुभव ही करते हैं । अतः शब्द नय से वेदना जीव के होती है, यह कथन ही उपयुक्त है ।
यहाँ वेदना स्वामित्व विधान पर घटित उपर्युक्त नयों को उदाहरण द्वारा प्रस्तुत करते हैं
किसी रेल दुर्घटना में अनेक व्यक्तियों के चोटें लगीं। कोई पैर की चोट की वेदना से पीड़ित है, कोई हाथ की, कोई सिर की कोई ज्वर की, कोई पेट की आदि भिन्न-भिन्न वेदना से पीड़ित हैं ।
उपर्युक्त दुर्घटनाग्रस्त व्यक्तियों की वेदना को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है । यथा
१. राम को वेदना हो रही है, उसके हाथ को वेदना हो रही है, उसका पैर वेदनाग्रस्त है। पुरुषों को वेदना हो रही है, स्त्रियों को वेदना हो रही है, बच्चों को वेदना हो रही है । हाथ-पैर, उदर में वेदना हो रही है । इस प्रकार के कथन र्नंगम नय हैं । यहाँ राम जीव है, हाथ नोजीव है, पुरुष बहुत से जीव हैं। हाथ-पैर उदर नोजीव हैं । इस प्रकार से वेदना के विविध रूप कथन नैगम नय के विषय हैं ।
२. पेट को वेदना हो रही है, हाथ वेदनाग्रस्त है, वह जीव वेदना से मर गया आदि कथन व्यवहार नय से है । वेदना वास्तव में तो जीव को होती है, हाथ-पैर पेट को नहीं। ये तो उस वेदना के होने में निमित्त मात्र हैं । परन्तु व्यवहार में हम यही अनुभव करते हैं या यही कथन करते हैं । यह कथन कारण रूप ( निमित्त ) में वेदना रूप कार्य का आरोप होने से है अर्थात् उपचार से है । अतः व्यवहार नय का कथन है। इसी प्रकार वेदना से जीव मर गया यह कथन भी वास्तविक नहीं है। जीव तो अमर है, जीव से शरीर छूटने को अथवा शरीर नाश को व्यवहार में जीव का मरना कहा जाता है । यहाँ कार्य में कारण का आरोप है। अतः व्यवहार नय से कथन है ।
३. किसी यात्री की हाथ, पैर, सिर दर्द आदि विविध या अनेक वेदनाओं का अलग-अलग उल्लेख न कर संक्षेप में यह कहना कि यात्री को वेदना हो रही है, इसी प्रकार अनेक वेदनाओं से ग्रस्त अनेक यात्रियों का अलग-अलग उल्लेख न कर समुच्चय रूप से यह कहना कि यात्रियों को वेदना हो रही है। यह संक्षिप्त या सारभूत कथन संग्रह नय कहा जाता है ।
४. 'यह राम अपने हाथ की वेदना से पीड़ित है।' इस कथन से आशय एकदम सीधा समझ में आता है । यह यथाभूत विद्यमान कथन ऋजुसूत्र नय कहा जाता है ।
५. 'वेदना जीव के होती है।' यहाँ इस वाक्य में केवल यह कथन किया जा रहा है कि वेदना का स्वामी वेदन करने वाला जीव ही होता है, अन्य कोई नहीं । इस कथन में अर्थ की ही प्रधानता है। किसी जीव या व्यक्ति विशेष से प्रयोजन नहीं है । अतः केवल अर्थ प्रधान होने से यह शब्द नय का कथन है ।
वेदना वेदन विधान
आठ प्रकार के कर्म पुद्गल स्कन्धों का जो वेदन ( अनुभवन) होता है, यहाँ उसका विधान प्ररूपणा है । वह तीन प्रकार की है— कर्म बंधते समय होने वाली वेदना बध्यमान वेदना है । कर्मफल देते समय होने वाली वेदना उदीर्ण वेदना है और इन दोनों से भिन्न कर्म वेदना की अवरज्या उपशान्त है ।
नैगम नय से ज्ञानावरणीय की वेदना कथंचित् १ बध्यमान है, २. उदीर्ण वेदना है, ३. उपशान्त वेदना है,
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