Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैनागमों में मुक्ति : मार्ग और स्वरूप | ३०६
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पण
NUNJAMINS
२. क्षेम है किन्तु अक्षेम रूप है।
जो सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रय से तो युक्त है किन्तु साधु वेष (स्वलिंग) से युक्त नहीं है । ३. अक्षेम है किन्तु क्षेम रूप है।
जो सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रय से तो युक्त नहीं है किन्तु साधुवेष (स्वलिंग) से युक्त है। ४. अक्षेम है और अक्षेम रूप है।
जो सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रय से भी युक्त नहीं है और साधु वेष से भी युक्त नहीं है। प्रथम भंग में मुक्ति मार्ग का पूर्ण आराधक है । द्वितीय भंग में मुक्ति मार्ग का देश आराधक है। तृतीय भंग में मुक्ति मार्ग का देश विराधक है।
चतुर्थ भंग में मुक्ति मार्ग का पूर्ण विराधक है । मुक्ति के कितने मार्ग?
मानव क्षेत्र से मुक्ति क्षेत्र में पहुँचने का मार्ग एक ही है या अनेक हैं ? इस जिज्ञासा का समाधान इस प्रकार है। मुक्ति मार्ग के सम्बन्ध में जैनागमों में दो विवक्षाएं हैं। (१) संक्षेप में मुक्ति का मार्ग एक है "क्षायिक भाव।" (२) विस्तृत विवक्षा के अनुसार मुक्ति के अनेक मार्ग हैं । ज्ञान, दर्शन और चारित्र की समवेत साधना ही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है।
तपश्चर्या चारित्र का ही एक अंग है। इसलिए आचार्य उमास्वति ने-"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" कहा है।
ज्ञान, दर्शन और चारित्र के साथ जो “सम्यक्" विशेषण का प्रयोग है वह विलक्षण प्रयोग है । इस प्रकार का प्रयोग केवल जैनागमों में ही देखा गया है।
__ यहाँ मुक्ति का मार्ग केवल दर्शन नहीं अपितु सम्यग्दर्शन है । इसी प्रकार मुक्ति के मार्ग ज्ञान और चारित्र नहीं अपितु सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र हैं ।
जिसकी दृष्टि सम्यक् (आत्मस्वरूप चिन्तन परक) है उसे सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। उस सम्यग्दृष्टि का दर्शन, ज्ञान और चारित्र ही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है। इनको संयुक्त साधना ही एकमात्र मुक्ति का मार्ग है।
ज्ञान, दर्शन और चारित्र की जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट साधना करने वाले भव भ्रमण से मुक्त होकर मुक्ति क्षेत्र में शाश्वत स्थिति को प्राप्त होते हैं। मुक्ति कब और कैसे ?
आत्मा कर्मबन्धन से बद्ध कब हुई और मुक्त कब होगी ? यह भी एक जिज्ञासा है । समाधान इस प्रकार है। आत्मा अनादिकाल से कर्मों से बद्ध है किन्तु कर्मक्षय होने पर मुक्त होगी।
जिस प्रकार स्वर्ण की खान में स्वर्ण अनादिकाल से मिट्टी से मिश्रित है। विधिवत् शुद्ध करने पर स्वर्ण शुद्ध हो जाता है। इसी प्रकार कर्म-रजबद्ध आत्मा तपश्चर्या से कर्म रज मुक्त होती है।
आत्मा और कर्म का सम्बन्ध अनादि सान्त है। इसलिए आत्मा कर्म रज से मुक्त होकर मुक्ति क्षेत्र में स्थित हो जाती है। अन्य दर्शनमान्य मुक्तिमार्ग
जैनागम सूत्रकृताङ्ग में अन्य दर्शनमान्य जिन मुक्ति मार्गों का निर्देश है-यहाँ उनका संक्षिप्त संकलन प्रस्तुत है।
तारागण आदि ऋषियों ने सचित्त जल के सेवन से मुक्ति प्राप्त की है।
SALARKHAND
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