Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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३०८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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(ग) आन्दोलन मार्ग-जहाँ झूले से आन्दोलित (ऊपर की ओर उठकर) होकर पहुंचा जाय । (घ) वेत्र मार्ग-बेंत के पौधे को पकड़कर नदी पार की जाय । (क) रज्जु मार्ग-जहाँ रस्सियाँ बाँधकर जाया जाय । (च) यान मार्ग-जहाँ किसी यान (रेल, मोटर, तांगा, रथ आदि) द्वारा जाया जाए। (छ) बिल मार्ग-जहाँ सुरंग द्वारा जाया जाय। (ज) पाश मार्ग-जहाँ जाने के लिए पाश (जाल) बिछाया गया हो। (स) कील मार्ग-रेतीले प्रदेश में कीलें गाड़कर बनाया मार्ग । (ज) अज मार्ग-जहाँ बकरों पर बैठकर जाया जाए। (ट) पक्षि मार्ग-भारण्ड पक्षी आदि पक्षियों पर बैठकर जहाँ जाया जाय । (8) छत्र मार्ग-जहाँ छत्र लगाकर जाया जाय । (ड) नौका मार्ग-जहाँ नौका द्वारा जाया जाय ।
(ढ) आकाश मार्ग-विद्याधर या देवताओं का मार्ग । अथवा वायुयान द्वारा जाने का मार्ग । (४) क्षेत्र मार्ग-यह मार्ग दो प्रकार का है।
(क) शालि आदि धान्य के क्षेत्र को जाने वाला मार्ग ।
(ख) ग्राम नगर आदि को जाने वाला मार्ग । (५) काल मार्ग-यह मार्ग दो प्रकार का है।
(क) शिशिर, वसन्त आदि किसी एक ऋतु विशेष में जाने योग्य मार्ग ।
(ख) प्रातः, सायं, मध्याह्न या निशा में जाने योग्य मार्ग । (६) भाव मार्ग-यह मार्ग दो प्रकार का है । १. प्रशस्त और २. अप्रशस्त ।
(क) प्रशस्त भाव मार्ग-इस मार्ग का अनुसरण करने से आत्मा सुगति को प्राप्त होता है ।
(ख) अप्रशस्त भाव मार्ग-इस मार्ग का अनुसरण करने से आत्मा दुर्गति को प्राप्त होता है। इसी प्रकार भाव मार्ग के कुछ अन्य प्रकार भी हैं ।
(क) १ सत्य मार्ग और २ मिथ्या मार्ग । (ख) १ सुमार्ग और २ कुमार्ग । (ग) १ सन्मार्ग और २ उन्मार्ग ।
द्रव्य मार्ग के अन्य और चार प्रकार १. क्षेम है और क्षेम रूप है।
जो मार्ग सम है और बटमार या श्वापदों से रहित है। २. क्षेम है किन्तु अक्षेम रूप है।
__मार्ग सम है किन्तु बटमार या श्वापदों से युक्त है। ३. अक्षेम है किन्तु क्षेम रूप है।
मार्ग विषम है किन्तु बटमार या श्वापदों से रहित है। ४. अक्षेम है और अक्षेम रूप है।
मार्ग भी विषम है और बटमार या श्वापदों से भी युक्त है। मार्ग के समान मार्गगामी भी दो प्रकार के होते हैं । यथा-१ सुमार्गगामी और २ कुमार्गगामी ।
भाव मार्गगामी के चार प्रकार १. क्षेम है और क्षेम रूप है।
जो सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रय से युक्त है और साधुवेष (स्वलिंग) से भी युक्त है।
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