Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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मेवाड़ राज्य की रक्षा में जैनियों की भूमिका | ११५
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सल्तनत की सत्ता कमजोर होने लगी तो मालदेव ने उधर से किसी भी प्रकार की सैनिक मदद की आशा न देख, उसने अपनी पुत्री का विवाह हमीर से कर दिया ताकि वह उसके अधीनस्थ मेवाड़ को लूटना व उजाड़ना बन्द कर दे। हमीर ने अपनी नवविवाहिता पत्नी की सलाह से विवाह के इस शुभ अवसर पर कोई जागीर या द्रव्य नहीं मांग कर मालदेव से उसके दूरदर्शी कामदार जालसी मेहता को मांग लिया, ताकि जालसी के सहयोग से हमीर की मनोकामना पूरी ही सके ।'
हमीर की इस राणी से क्षेत्रसिंह नामक पुत्र हुआ। ज्योतिषियों की सलाह के अनुसार चित्तौड़गढ़ के क्षेत्रपाल की पूजा (बोलवां) के निमित्त महाराणी को अपने पुत्र क्षेत्रसिंह के साथ चित्तौड़ जाना पड़ा। इस अवसर पर जालसी मेहता भी साथ में था। मालदेव की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जैसा सोनगरा चित्तौड़ का शासक था। जालसी मेहता ने सम्पूर्ण स्थिति का अवलोकन करके कूटनीति एवं दूरदर्शिता से वहाँ के सामन्त-सरदारों को जैसा सोनगरा के विरुद्ध उभारना आरम्म किया। जब उसे विश्वास हो गया कि चित्तौड़ का वातावरण हमीर के पक्ष में है तो हमीर को गुप्त सन्देश भेजकर विश्वस्त सैनिकों के साथ उसे चित्तौड़ बुलाया। योजनानुसार किले का दरवाजा खोल दिया गया और घमासान युद्ध के पश्चात् हमीर का चित्तौड़ पर अधिकार हो गया। इस प्रकार जालसी के सम्पूर्ण सहयोग से हमीर वि० सं० १३८३ में मेवाड़ का महाराणा बना और उसके बाद देश के स्वतन्त्र होने तक मेवाड़ पर सिसोदे५ के इस हमीर के वंशजों का ही आधिपत्य रहा, जिसमें महाराणा कुमा, सांगा, प्रताप और राजसिंह जैसे महान प्रतापी व इतिहास प्रसिद्ध शासक हुए। जालसी मेहता की इस स्वामीमक्ति, कूटनीति एवं दूरदर्शिता से प्रभावित होकर महाराणा हमीर ने उसे अच्छी जागीर दी, सम्मान दिया तथा उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाई। रामदेव एवं सहनपाल
महाराणा हमीर के बाद क्रमश: क्षेत्रसिंह (वि० सं० १४२१-१४३६) एवं लक्षसिंह अर्थात् लाखा (वि० सं० १४३६-१४५४) मेवाड़ के महाराणा बने । इनके राज्यकाल में देवकुलपाटक (देलवाड़ा) निवासी नवलखा लाधु का पुत्र रामदेव मेवाड़ का राज्यमन्त्री था। इसकी पत्नी का नाम मेलादेवी था, जिसके दो पुत्र क्रमशः सहण एवं सारंग थे । महाराणा मौकल (सं० १४५४-१४६०) एवं महाराणा कुम्भा के राज्यकाल (वि० १४६०-१५२५) में इसका पुत्र सहणपाल राज्यमन्त्री था। इसे शिलालेखों में 'राजमन्त्री धुराधौरयः' के सम्बोधन से सम्बोधित किया गया है। तत्कालीन जैनाचार्य ज्ञानहंसगणि कृत 'सन्देह दोहावली' की प्रशस्ति में इसकी प्रशंसा की गई है। रामदेव एवं सहणपाल का लम्बे समय तक मेवाड़ का राज्यमन्त्री रहना निश्चित ही उनके दूरदर्शी व कुशल व्यक्तित्व के कारण सम्भव हुआ होगा। मेवाड़ में जैनधर्म के उत्थान में दोनों ने महत्त्वपूर्ण योग दिया था। जिसका उल्लेख कई शिलालेखों एवं हस्तलिखित ग्रन्थों में मिलता है।
१ (क) कर्नल जेम्स टाड-एनल्स एण्ड एण्टिक्विटीज आव राजस्थान (हि० सं०) पृष्ठ १५६ । (ख) कविराजा श्यामलदास ने वीरविनोद, प्रथम भाग, पृष्ठ २९५ पर जालसी का नाम मौजीराम मेहता दिया
है, जिसे गो० ही० ओझा ने अशुद्ध बताया है, द्रष्टव्य-ओझा कृत 'राजपूताने का इतिहास', प्रथम भाग,
पृष्ठ ५०६ । २ जो हमीर के बाद मेवाड़ का शासक बना और महाराणा खेता के नाम ने प्रसिद्ध हुआ। ३ बाबू रामनारायण दूगड़-मेवाड़ का इतिहास, प्रकरण चौथा, पृष्ठ ६८ । ४ एनल्स एण्ड एन्टिक्विटीज आव राजस्थान (हिन्दी), पृष्ठ १५९-६०। ५ हमीर, सिसोदे गाँव का रहने वाला था, इसी कारण गुहिलवंशी शासक हमीर के समय से ही सिसोदिया कहलाए।
ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग (उदयपुर) पृष्ठ १३२४ । ७ श्री रामवल्लभ सोमानी कृत (अ) महाराणा कु'भा, पृष्ठ ३०५ ।
(ब) वीरभूमि चित्तौड़, पृष्ठ १६१ । ८ (अ) वही, पृष्ठ १५८, १५६ व ३०५ एवं
(ब) वही, पृष्ठ १६२ ।