Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१८६ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जो महाराज — अभिनन्दन ग्रन्थ
तेली परिवार ने उपदेश को हृदयंगम किया । सब को तब अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि तेली के गहनों की पोटली उसके निवास स्थान पर ही पड़ी मिल गई।
इस घटना से चतुर्दिक् धर्म के पुण्य प्रताप की जाहोजलाली फैल गई ।
स्वर्गारोहण
उदय के साथ अस्त शब्द जुड़ा हुआ है, जन्म के साथ मृत्यु भी । श्रद्धेय श्री माँगीलाल जी महाराज अनेकों उतार-चढ़ाव के मध्य अपने संयमी जीवन को सुरक्षित रखते हुए वीरशासन की यथाशक्ति सेवा करते रहे ।
सं० २०२० ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष में, जब आप सहाड़ा विराजित थे, आपको अचानक टिटेनस की व्याधि हो गई । हम दो मुनि - सौभाग्य मुनि और मदन मुनि - रायपुर की तरफ से विहारकर पूज्य श्री गुरुदेव की सेवा में कपासन जा रहे थे । मार्ग में श्रद्धेय माँगीलाल जी महाराज के व्याधिग्रस्त होने की बात ज्ञात हुई तो सहाड़ा चले गये । महाराज श्री की व्याधि की भयंकरता को देखते हुए वहीं ठहरे। लगभग दिन में दो बजे महाराज श्री का समाधिपूर्वक देहावसान हो गया ।
इस अवसर पर सहाड़ा संघ ने बड़ी सूझबूझ तथा तत्परता से काम लिया । अचानक यह परिस्थिति आई थी, फिर भी श्रावक संघ ने यथोचित प्रबन्ध कर अन्तिम समारोह को सफल बनाया ।
श्रद्धेय श्री मांगीलाल जी महाराज गौरवर्ण और ऊँचाई युक्त एक अच्छे व्यक्तित्व के धनी, उदारमना सत्पुरुष थे । स्वभाव से भद्र और मिलनसार थे। समाज में रचनात्मक कार्यों के प्रति आपका बड़ा आग्रह रहा
करता था ।
पं० रत्न श्री हस्तीमल जी महाराज, श्री पुष्कर मुनि जी तथा श्री कन्हैयालाल जी मुनि तीन उनके शिष्य हैं, जो संचरण - विचरण कर उनके गौरव की श्री वृद्धि कर रहे हैं ।
सूखी दीवार पर चाहे कोई मुट्ठी भर धूल फेंके या मन भर, वह दीवाल पर नहीं चिपक कर स्वयं ही नीचे गिर जायेगी ! क्यों ? कारण स्पष्ट है | दीवार में गीला या चिकनापन नहीं है ।
यदि संसार में रहते हुए हमारा मन भी इसी प्रकार सूखा (अनासक्त) रहे तो बहुत सघन कर्मबन्धन से अपने आप हम बचते रहेंगे । कर्मबन्धन का मूल कारण है आसक्ति ! राग-द्वेष की परिणति तथा योगों की मोह स्निग्ध स्थिति ।
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- 'अम्बागुरु- सुवचन'
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