Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२०४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ
न्यायावतार
सिद्धसेन दिवाकर की प्राकृत रचना 'सन्मतिप्रकरण' के अतिरिक्त उनकी संस्कृत रचनाएँ भी उपलब्ध हैं । ३२ श्लोक वाली इन्होंने इक्कीस द्वात्रिंशिकाएँ तथा न्यायावतार नामक ग्रन्थ संस्कृत में लिखा था । द्वात्रिंशिकाओं में स्तुति तथा जैन दर्शन के विभिन्न पक्षों का निरूपण किया गया है। न्यायअवतार में जैन दृष्टि से पक्ष, साध्य, हेतु, दृष्टान्त, हेत्वाभास आदि के लक्षण हैं तथा अन्त में नयवाद और अनेकान्तवाद के स्वरूप का स्पष्ट विवेचन है । जैन न्याय का समन्वित स्वरूप प्रगट करने वाला यह सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। सिद्धसेन दिवाकर ने गुप्त युग में मेवाड़ में संस्कृत की ऐसी सशक्त रचनाएँ प्रस्तुत कर न केवल तार्किक जगत में जैन न्याय की प्रतिष्ठा की, अपितु मेवाड़ में संस्कृत रचना की परम्परा को सुस्थिर भी किया। इनके अध्ययन और साहित्य-सृजन के परिणामस्वरूप ही चित्तौड़ सदियों तक जैन विद्या का अध्ययन केन्द्र बना रहा ।
हरिभद्रसूरि की संस्कृत रचनाएँ
चित्तौड़ को संस्कृत साहित्य का प्रधान केन्द्र बनाने में आचार्य हरिभद्र का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने दर्शन और प्रमाण - शास्त्र की अनेक रचनाएँ संस्कृत में लिखी हैं । प्राकृत में लिखे आगमों को विद्वान् समाज के सम्मुख व्याख्या सहित प्रस्तुत करने में हरिभद्र अग्रणी हैं। इन्होंने आगमों पर टीकाएँ भी लिखी हैं तथा स्वतन्त्र ग्रन्थ भी । इनकी संस्कृत रचनाओं की संख्या पर मतभेद है। अभी तक उनकी निम्न संस्कृत रचनाएँ उपलब्ध हैं :
१. प्राचीन ग्रन्थों पर टीकाएं
१. अनुयोगद्वार विवृत्ति
३. आवश्यक सूत्र बृहत् टीका ५. जीवाजीवाभिगम सूत्र लघु वृत्ति
७. दशर्वकालिक वृहद्वृत्ति
६. पंच सूत्र व्याख्या
११. ध्यानशतकवृत्ति १३. न्याय प्रवेश टीका ।
२. मौलिक ग्रन्थ ( टीका सहित)
१४. अनेकान्तजयपताका १६. शास्त्रवार्ता समुच्चय १८. हिंसाष्टक,
३. टीका रहित स्वरचित ग्रन्थ
२०. अनेकान्तवाद प्रवेश
२२. धर्मबिन्दु
२४. योगबिन्दु
२६. श्रावक धर्मतन्त्र
२८. षोडश प्रकरण
२. आवश्यक सूत्र निवृत्ति ४. चैत्यवन्दन सूत्र वृत्ति
६. तत्वार्थसूत्र लघु वृत्ति
८. नन्दी अध्ययन टीका
१०. प्रज्ञापना सूत्र टीका १२. श्रावक प्रज्ञप्ति टीका,
१५. योगदृष्टि समुच्चय
१७. सर्वज्ञसिद्धि
१६. अनेकान्तजयपताकोद्योत दीपिका ।
२१. अष्टकप्रकरण
२३. भावार्थमात्रवेदिनी
२५. लोकतच्व निर्णय
२७. षड्दर्शन समुच्चय २६. संसारदावानल स्तुति । २
१. संघवी, सुखलाल, 'सन्मति प्रकरण', प्रस्तावना, पृ० ९५-११३ २. शास्त्री, नेमिचन्द्र, वही, पृ० ५२-५३
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