Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२६० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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एवंभूत नय-वह कथन जिसमें शब्द के अर्थ के अनुरूप क्रिया भी हो।
प्रथम चार नय प्रधानतः रूप या वस्तु की अवस्था पर आधारित होने से द्रव्यार्थिक नय कहलाते हैं और अन्तिम तीन नय शब्द के अर्थ अर्थात् भाव या पर्याय पर आधारित होने से भावार्थक या पर्यायाथिक नय कहे जाते हैं ।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि १. वस्तु का अनेक भेदोपभेद रूप कथन नैगम नय है । २. वर्ग रूप कथन संग्रह नय है । ३. उपचरित कथन व्यवहार नय है। ४. विद्यमान यथारूप कथन ऋजुसूत्र नय है । ५. शब्द के अर्थ के आशय पर आधारित कथन शब्द नय है। ६. शब्द के व्युत्पत्तिरूप अर्थ का सीमित अथवा किसी रूप विशेष का द्योतक कथन समाभिरूढ़ नय है और ७. शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ का अनुसरण करने वाला एवंभूत नय है ।
प्रथम यहाँ अनुयोगद्वार सूत्र में नय के निरूपण हेतु आए तीन दृष्टान्त-१. प्रस्थक, २. वसति एवं ३. प्रदेश को प्रस्तुत करते हैं । १. प्रस्थक का दृष्टान्त
नगम नय-कोई पुरुष प्रस्थक (अनाज नापने का पात्र) बनाने को लड़की लाने के लिये जाने से लेकर प्रस्थक बनाने की सब क्रियाओं को 'मैं प्रस्थक बनाता हूँ', ऐसा कहकर व्यक्त करता है। यहाँ प्रस्थक की अनेक अवस्थाओं का वर्णन 'प्रस्थक' से होना नैगम नय का कथन है। कारण कि इस कथन से प्रस्थक बनाने की क्रियाओंलकड़ी लाने जाना, लकड़ी काटना, छीलना, साफ करना आदि अनेक रूपों (भेदों अथवा अवस्थाओं) का बोध होता है।
एक ही कथन से भेद, उपभेद, अवस्थाएँ आदि रूप में अथवा अन्य किसी भी प्रकार से अनेक बोध हों (आशय प्रकट हों), वह नैगम नय का कथन कहा जाता है।
व्यवहार नय-नैगम नय में वर्णित उपर्युक्त सब कथन व्यवहार नय भी है । कारण कि लकड़ी लाने जाना, लकड़ी छीलना आदि सब क्रियाएँ जो प्रस्थक बनाने की कारण रूप हैं उनका यहाँ प्रस्थक बनाने रूप कार्य पर आरोपण (उपचार) किया जा रहा है। यद्यपि यहाँ प्रत्यक्ष लकड़ी लाने जाने की क्रिया हो रही है न कि प्रस्थक लाने की, क्योंकि अभी तो प्रस्थक बना ही नहीं है और जो अभी बना ही नहीं है, है ही नहीं, उसे कैसे लाया जा सकता है ? फिर भी व्यवहार में लकड़ी लाने जाने को प्रस्थक लाने जाना कहना सही है । अतः यह कथन व्यवहार नय है।
संग्रह नय-अनाज नापने में उद्यत अर्थात् नापने के लिये जो पात्र तैयार हो गये हैं, उन विभिन्न पात्रों को प्रस्थक कहना संग्रह नय है।
ऋजुसूत्र नय-'उज्जुसुयस्स पत्थओऽवि पत्थओ मेज्जपि पत्थओ' अर्थात् प्रस्थक शब्द से जहाँ नापने का पात्र अभिप्रेत है या नापी हुई वस्तु अभिप्रेत है वह ऋजुसूत्र नय है। कारण कि यहाँ प्रस्थक शब्द से ये अर्थ सरलता से समझ में आ जाते हैं। अर्थ समझने के लिये न किसी प्रकार का प्रयास करना पड़ता है और न किसी अन्य प्रकार का आश्रय लेना पड़ता है।
शब्द नय-तिण्हं सद्दनयाणं पत्थयस्स अत्याहिगार जाणओ जस्स वा बसेणं पत्थओ निप्फज्जइ सेतं यत्यय दिक्षतेणं ।
अर्थात् तीनों शब्द नय से प्रस्थक का अर्थाधिकार ज्ञात होता है अथवा जिसके लक्ष्य से प्रस्थक निष्पन्न होता है वह शब्द नय है। प्रस्थक के प्रमाण व आकार-प्रकार के भाव के लिये प्रयुक्त प्रस्थक शब्द, शब्द नय का कथन है। २. वसति का दृष्टान्त
नैगम नय-आप कहाँ रहते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहना कि मैं (१) लोक में, (२) तिर्यक् लोक में, (३) जम्बू द्वीप में, (४) भारतवर्ष में, (५) दक्षिण भारत में, (६) अमुक प्रान्त में, (७) अमुक नगर में, () अमुक मोहल्ले में, (8) अमुक व्यक्ति के घर में, (१०) घर के अमुक खंड में रहता हूँ। ये सब कथन या इनमें से प्रत्येक कथन नैगम नय है । कारण कि यहाँ बसने विषयक दिये गये प्रत्येक उत्तर से उस स्थान के अनेक भागों में कहाँ पर बसने का बोध होता है, अर्थात् बसने के अनेक स्थानों का बोध होता है । अतः नैगम नय है ।
व्यवहार नय-उपर्युक्त सब कथन व्यवहार नय मी है। कारण कि जिस क्षेत्र में वह अपने को बसता
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