Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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एक जैन भील नेता श्री मोतीलाल तेजावत | २१६
श्री तेजावत जी का जीवन सतत संघर्षों का जीवन रहा । उन्हें अपने जीवन के लगभग तीस वर्ष फरारी, जेल और नजरबन्दी में बिताने पड़े। उन्होंने अपनी युवावस्था में सेवा क्षेत्र में जो कदम रखा तो कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। विपदाओं की चट्टानें उनके सिर से आकर टकराती रहीं और उनकी दृढ़ता के आगे चूर-चूर होती रहीं। उनकी एकमात्र साथ यही रही कि गरीबों को शोषण और अत्याचारों से मुक्ति मिले और वे मानवोचित जीवन बिता सकें। देश की स्वतन्त्रता के साथ राजस्थान भी राजाशाही और सामन्ती नागपाश से मुक्त हुआ और इस लक्ष्य को सिद्ध करने में श्री तेजावतजी जैसे अनेक देशभक्तों ने अपने जीवन को तिल-तिल करके खपाया है। उन्हें जिन्दा शहीद कहा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी।
श्री तेजावत जी सादगी और विनय की साक्षात मूर्ति थे। उन्होंने अपने जीवन में वह चमत्कार कर दिखाया, जो कोई विरला ही दिखा सकता है। वह लाखों भीलों के बेताज बादशाह थे, जो उनके संकेत पर मर-मिटने को उद्यत रहते थे। ७७ वर्ष की अवस्था में, ५ दिसम्बर, सन् १९६३ को उन्होंने अपना यह नश्वर शरीर छोड़ा, किन्तु वह अपने पीछे त्याग, बलिदान और कष्ट सहन की ऐसी कहानी छोड़ गये हैं, जो देश के स्वतन्त्रता-संग्राम में स्वर्णाक्षरों में लिखी जानी चाहिए। श्री तेजावत जी का जीवन आने वाली पीढ़ियों को सदा सर्वदा प्रेरणा देता रहेगा।
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तुम सुस्त होकर क्यों बैठे हो ! जो समय बीत रहा है वह लौटकर वापस नहीं आयेगा। जो कीमती घड़ियाँ गुजर रही हैं, उनका मूल्य आज नहीं, किन्तु बीत जाने के बाद तुम्हें पता लगेगा, कि इन घड़ियों का सदुपयोग तुम्हारे भाग्य पुष्प को खिलाने में कितना महत्वपूर्ण होता।
जो समय का महत्व समझता है, वह चतुर है, जो समय का सदुपयोग करता है वह जीवन में अवश्य सफल होता है।
-'अम्बागुरु-सुवचन'
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ALMAALCIPANA