Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२१८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन पन्थ
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व्यक्ति को मिट्टी की कुण्डी में भरे हुए जल में से एक चुल्लू पानी पीकर इस आशय की शपथ लेनी पड़ती थी कि वह विश्वासघात नहीं करेगा। श्री मालवीय को भी शपथ लेने की यह प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी। उन्होंने भीलों को कुछ रियायतें देना स्वीकार किया।
किन्तु मील-आन्दोलन शान्त नहीं हुआ। श्री मालवीय त्यागपत्र देकर सिरोही से चले गये। अंग्रेज सरकार भील-आन्दोलन को कुचल देना चाहती थी। अतः भीलों को दबाने के लिए अंग्रेज अफसर की देखरेख में सेना भेजी गयी। भीलों पर मशीनगन से गोलियां चलीं। इस हत्याकाण्ड में अनेक व्यक्ति हताहत हुए। फौज ने भीलों के भूला और बालोलिया नामक दो गांवों को जला कर राख कर दिया। भीलों के अन्न गोदाम और कपड़े-लत्ते सब स्वाहा हो गये । पशु भी आग की लपटों से नहीं बचे । सिरोही के इस भील हत्याकाण्ड की ब्रिटिश संसद में भी चर्चा हुई और भारतीय लोकमत क्षुब्ध हो उठा।
श्री तेजावत जी ने केवल राजाशाही और सामन्ती शोषण एवं अत्याचारों का ही विरोध नहीं किया बल्कि उन्होंने मीलों को शराबखोरी और मांस-सेवन की बुराइयों से भी विरत किया। उनके प्रभाव से लाखों मीलों ने इन बुराइयों को छोड़ने की शपथ ली और सदाचारी जीवन बिताने का संकल्प लिया। भीलों ने चोरी करना अथवा डाके डालना छोड़ दिया। समाज-सुधार की इस लहर ने लाखों भीलों को प्रभावित किया।
जब गांधीजी को श्री तेजावत के इस सुधारवादी कार्य का पता चला तो उनकी स्वाभाविक इच्छा हुई कि उन्हें खुले रूप में सुधार कार्य जारी रखने का अवसर दिया जाए। भील आन्दोलन की लहर तब शान्त हो चुकी थी। श्री मणिलाल जी कोठारी गांधी जी के विश्वस्त साथियों में थे। उनका राजनीतिक विभाग के ब्रिटिश अधिकारियों से मिलना-जुलना होता था। उन्होंने उनसे यह आश्वासन प्राप्त करने की कोशिश की कि श्री तेजावत पर उनकी पिछली कार्रवाइयों के आधार पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जायगा। अन्त में गांधी जी के परामर्श पर श्री तेजावत ने ईडर रियासत के खेड ब्रह्म गाँव में अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया, और कोई रियासत श्री तेजावत पर मुकद्दमा चलाने के लिए राजी नहीं हुई, किन्तु मेवाड़ रियासत ने उनको मांग लिया। श्री तेजावत को ईडर रियासत ने मेवाड़ रियासत के अनुरोध पर उसके हवाले कर दिया। . मेवाड़ रियासत श्री तेजावत से बहुत भयभीत थी। उसने उन्हें ६ अगस्त, १९२६ से २३ अप्रैल, १६३६ तक लगभग सात वर्ष उदय सेण्ट्रल जेल में बन्द रखा। श्री तेजावत भीलों में समाज-सुधार का काम करें, गाँधी जी की इस इच्छा को मेवाड़ रियासत ने पूरा नहीं होने दिया । इस प्रकार श्री तेजावत को राजाओं की स्वेच्छाचारिता और सामन्ती शोषण का विरोध करने का दण्ड भुगतना पड़ा । किन्तु यह लम्बा कारावास भी गरीबों की सेवा करने के उनके सँकल्प को ढीला नहीं कर पाया। अन्त में हार कर मेवाड़ रियासत ने श्री तेजावत को जेल से तो रिहा कर दिया, किन्तु उन पर यह प्रतिबंध लगा दिया कि वह उदयपुर शहर की सीमा से बाहर नहीं जायेंगे। उनके लिए यह भी एक प्रकार की कैद ही थी। एक बार जब भोमट का भील क्षेत्र दुष्कालग्रस्त हुआ तो श्री तेजावत ने राजकीय प्रतिबंध की परवाह न करते हुए भील क्षेत्र के लिए प्रस्थान किया, किन्तु उन्हें पुन: गिरफ्तार करके उदयपुर में नजरबन्द कर दिया गया।
मेवाड़ में प्रजामण्डल की स्थापना के लिए सत्याग्रह हुआ तो श्री तेजावत उसमें कूद पड़े। उन्हें गिरफ्तार किया गया और कुछ समय बाद रिहा कर दिया गया। सन् १९४२ में देश में 'अंग्रेजो, भारत छोड़ो' आन्दोलन की शुरूआत हुई । मेवाड़ प्रजामण्डल ने महाराणा से मांग की कि वह ब्रिटिश ताज से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर ले और अपने राज्य को स्वतन्त्र घोषित कर दे। श्री तेजावत मेवाड़ प्रजामण्डल के हिमायती थे, अत: उनकी सीमित स्वतन्त्रता भी छीन ली गयी। उन्हें अगस्त १९४२ में गिरफ्तार कर लिया गया और सन् १६४५ तक पूरे तीन वर्ष जेल में नजरबन्द कैदी के रूप में रखा गया। उसके नाद जब उन्हें जेल से रिहा किया गया, तो उन पर पहले की भांति उदयपुर शहर की सीमाओं के भीतर रहने का प्रतिबंध लगा दिया गया। इस नजरबन्दी से उन्हें तभी मुक्ति मिली, जब सन् १९४७ में देश स्वतन्त्र हुआ।
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