Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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जैन साहित्य और संस्कृति को भूमि : मेवाड़ | १६५
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साहित्य एवं संस्कृति का महान् प्रचार किया । मट्टारक सकलकीर्ति के पश्चात् जितने भी भट्टारक हुए उन्होंने मेवाड़ प्रदेश में विहार करके अहिंसा एवं अनेकांत दर्शन का प्रचार किया। अठारहवीं शताब्दी में महाकवि दौलतराम ने उदयपुर में रहते हुए जीवंधर चरित, क्रियाकोश भाषा की रचना की और अपने काव्यों में महाराणाओं की उदारता एवं धर्मप्रियता की प्रशंसा की। ग्रन्थ भंडारों का केन्द्र
मेवाड़ प्रदेश जैन ग्रन्थ-भंडारों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण प्रदेश माना जाता है । मेवाड़ की राजधानी उदयपुर साहित्य एवं संस्कृति का सैकड़ों वर्षों तक केन्द्र रहा और आज भी उसको उसी तरह से सम्मान प्राप्त है। उदयपुर नगर के सभी दिगम्बर एवं श्वेताम्बर मन्दिरों में छोटे-बड़े रूप में शास्त्र भंडार हैं जिनमें प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ संग्रहीत हैं । ब्रह्म नेमिदत्त द्वारा रचित 'नेमिनाथ पुराण' की उदयपुर में सन् १६६४ एवं १७२६ में प्रतिलिपि की गई जो आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर में सुरक्षित हैं । संवत् १७६७ में लिखित 'स्याद्वादमंजरी' की पांडुलिपि जयपुर के ही एक अन्य भंडार में संग्रहीत है। इसी तरह और भी पचासों ग्रन्थों की पाँडुलिपियाँ हैं जो उदयपुर नगर में लिखी गई थीं और जो आज राजस्थान के विभिन्न ग्रन्थ भंडारों में संकलित की गई हैं। अब यहाँ मेवाड़ के कुछ प्रमुख ग्रन्थ भंडारों का सामान्य परिचय दिया जा रहा है। शास्त्र-भंडार संभवनाथ, दि० जैन मन्दिर, उदयपुर
उदयपुर नगर का संभवनाथ जैन मन्दिर प्राचीनतम मन्दिर है । इस मन्दिर में हस्तलिखित पांडुलिपियों का बहुत अच्छा संग्रह है। यहाँ के शास्त्र भंडार में ५१७ पांडुलिपियाँ हैं जो १५वीं शताब्दी से २०वीं शताब्दी तक की लिखी हुई हैं। भंडार में प्राचीनतम पाण्डुलिपि मट्टोत्पल के लघु जातक टीका की है, जिसका लेखन काल सन् १४०८ है तथा नवीनतम पांडुलिपि 'सोलहकरण विधान' की है जिसका लिपि संवत् १९६५ है। हिन्दी रचनाओं की दृष्टि से इस मन्दिर का संग्रह बहुत ही उत्तम है तथा २५ से भी अधिक रचनाएँ प्रथम बार प्रकाश में आयी हैं। भंडार में संग्रहीत कुछ महत्त्वपूर्ण पांडुलिपियों का परिचय निम्न प्रकार है
(१) सीता शीलराम पताका गुणबेलि-यह आचार्य जयकीर्ति की कृति है जिन्होंने संवत् १६०४ में निबद्ध की थी। इस मंडार में उसकी मूल पांडुलिपि उपलब्ध है। कोट नगर के आदिनाथ मन्दिर में इसकी रचना की गई थी। ग्रन्थ का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है
संवत गोल चउ उत्तरि सीता तणी गुण वेकल ज्येष्ठ सुदी तेरस बुधि रची भणी करै गैकल । भाव भगति भणि सुणि सीता सती गुण जैह जय कीरति सूरी कही सुख सूं ज्यो पलहि तेह ।।४।।
सुद्ध थी सीता शील पताका, गुण वेकल आचार्य जयकीति विरचिता। संवत् १६७४ वर्षे आषाढ़ सुदी ७ गुटौ श्री कोट नगरे स्वज्ञानावरणी कर्म क्षयार्थ आ० श्री जय कीर्तिना स्वहस्ताइयाँ लिखितंय ।
(२) राजुल पत्रिका-यह सोमकवि द्वारा विरचित पत्रिका है, जो राजुल द्वारा नेमीनाथ को लिखी गई है ।
(३) हनुमान चरित रास-ब्रह्मज्ञान सागर की रचना है जिसे उन्होंने संवत् १६३० में पालुका नगर के शीतलनाथ मन्दिर में निबद्ध किया था। कवि हुबंड जाति के थे उनके पिता का नाम अकाकुल एवं माता का नाम अमरादेवी था।
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रहे रांण के पास, रांण अति किरपा करई । जाने नीको नाहि, भेद भावजु नहिं घरई।