Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
परम श्रद्धेय श्री मांगीलालजी महाराज | १८५
००००००००००००
००००००००००००
.
FENNN
FIRBARS
म्यान TELI
पारिवारिक स्त्रियों पर डायन के कलंक थे। जिस परिवार पर ऐसे आक्षेप थे, वे परिवार अत्यन्त दु:खी और त्रस्त रहते थे। वे समाज में निरन्तर अपमानित होते रहते थे।
स्वामीजी ने अपने सद्बोध से उक्त गांवों के उन परिवारों का उद्धार किया। यह उपकार भी किसी अभयदान से कुछ कम नहीं था । फूट मिटाई
___ श्रद्धेय स्वामी जी जहाँ कहीं पधारते वहाँ समाज में फूट-तड़ा आदि होता तो उसे मिटाने का भरसक प्रयास करते ।
पड़ासोली, अड़सीपुरा आदि ऐसे मेवाड़ में कई गाँव हैं, जहाँ की फूट स्वामी जी के प्रयत्नों से समाप्त हुई।
स्वामी जी की विचारधारा के अनुसार फूट समाज को विनाश की तरफ ले जाने वाला एक पिशाच है । यह जहाँ फैल जाता है, उस समाज का फिर बच रहना सम्भव नहीं। श्रमण संघ से अलग
श्रद्धेय स्वामी जी यों तो एकता के प्रबल पक्षधर थे, किन्तु एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने श्रमण संघ से त्यागपत्र दे दिया । त्यागपत्र के पीछे कारण माइक 'लाउड स्पीकर' के प्रयोग का बताया गया ।
कुछ वर्षों पहले ही लाउडस्पीकर में धड़ाधड़ बोलने वाले मुनिराजों के साथ देहली आदि क्षेत्रों में आपका घनिष्ठ सम्बन्ध रह चुका था । फिर उसी को लेकर त्यागपत्र का कारण समझ में तो नहीं आया। किन्तु विचारधारा के परिवर्तन के सिद्धान्त को मानते हुए जो कारण बताया गया उसी को तो कहा जा सकता है।
श्रमण संघ से त्यागपत्र देने के बाद आपका लगातार उससे सम्बन्ध विच्छेद रहा ।
हर्ष का विषय है कि उन्हीं के मान्य शिष्य श्री हस्तीमल जी महाराज आदि तीन ठाणा पुनः श्रमण संघ में प्रविष्ट हो चुके हैं तथा अभी आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज के आज्ञानुवर्ती हैं । विचरण प्रिय
मुनि श्री बड़े विचरण-प्रिय थे। उन्होंने अपने जीवन में हजारों मील की पदयात्राएँ की । मेवाड़, मध्यभारत, दिल्ली प्रदेश, मारवाड़, गुजरात, बम्बई प्रदेश, महाराष्ट्र आदि दूरवर्ती प्रदेशों की यात्राएं कर अनेकों अनुभव प्राप्त किये।
'दिव्यजीवन' (स्वामी जी के जीवन पर लिखी गई पुस्तक) के अनुसार एक जगह आपको चोरों ने घेर लिया। महाराज के पास जब उन्होंने काष्ठपात्र आदि सामान्य वस्तुएँ देखीं तो विस्मित होकर वे नम्रता पूर्वक चले गये।
घुमक्कड़ जीवन में कई अनुभव होते हैं, जिनमें कुछ खट्टे होते हैं तो कुछ मीठे भी।
एक जगह स्वामी जी को ही चोर समझ लिया गया। बात यों हुई कि एक मकान में किसी वस्तु की याचना करने प्रवेश किया तो भीतर की स्त्री ने “चोर-चोर" कहकर हल्ला किया। पड़ोसी दौड़कर आये किन्तु मुनि श्री को देख चकित हो गये । मुनि जी ने कहा-मैं तो कुछ याचना को आया था।"
जैन मुनि को 'चोर' कहने वाली उस महिला को कई लोगों ने फटकारा। फिर तो वह बहुत दुखी हुई।
अब एक मीठा अनुभव भी सुनिये-स्वामी जी बाघपुरा में थे। वहाँ एक तेली के यहाँ से चांदी के कुछ गहने चोरी चले गये । तेली परिवार बड़ी चिन्ता में था। उसने सुना कि यहां कोई मुनिराज आये हुए हैं। बिचारा तेली वहां पहुंचा और गिड़गिड़ाने लगा।
मुनिराज क्या कर सकते थे? वे तो धर्मोपदेश देते हैं। उन्होंने कहा-"मद्य-मांस आदि पापाचरण का त्याग करो, धर्म की शरण में जाओ !"
HNNA
A
AD
HTRA
ACE
or::SBct
www.ainelibrary.org