Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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परम श्रद्धेय श्री मांगीलालजी महाराज
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पूज्य आचार्य श्री एकलिंगदासजी महाराज के शिष्यपरिवार में परम श्रद्धेय श्री मांगीलालजी महाराज का नाम कई गौरवमय घटनाओं के साथ जुड़ा हुआ है।
इनका जन्मस्थान राजकरेड़ा है। श्री गम्भीरमलजी संचेती तथा श्री मगनबाई इनके माता-पिता थे। वि०सं० १६६७ पौष कृष्णा अमावस्या गुरुवार इनका जन्म-दिन था।
संयोग और वियोग की अविरल शृखला से आबद्ध इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। कालचक्र निरन्तर अपना काम करता रहता है । वह कब किसे ग्रस ले, कोई कुछ नहीं कह सकता।
श्री गम्भीरमलजी का असमय में देहावसान हो गया। अचानक ही शिशु और उसकी माता असहाय स्थिति में चले गये।
संसार तो स्वार्थ से परिपूर्ण है, नि:स्वार्थ कोई किसी की सेवा करे, ऐसे व्यक्ति प्रायः दुर्लभ होते हैं ।
श्री गम्भीरमल जी के चले जाने के बाद पारिवारिक पक्ष यथोचित सेवा से हटने लगा। बच्चे का ननिहाल पोटलां था । वे लोग सस्नेह सेवा साधने को तैयार थे। किन्तु श्री मगनबाई ऐसी न थी कि वह पराश्रित हो जीवन बिताए । कई अभावों के मध्य करेड़ा ही बच्चे का पालन-पोषण करने लगी।
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सुसम्पर्क
उन्हीं दिनों परम विदुषी महासती जी श्री फूलकुँवर जी महाराज की सुयोग्य धर्म प्रभाविका महासती श्री शृगारकुंवर जी महाराज आदि ठाणा का राजकरेड़ा में पदार्पण हुआ। श्री मगनबाई का महासती जी से यहीं सुसम्पर्क हुआ जिसने उनके जीवन को नई प्रेरणाओं से भर दिया।
महासतीजी ने सुधाविका श्री मगनबाई को संसार की नश्वरता तथा स्वार्थपरायणता पर कई उपदेश दिये, जिनका उनके हृदय पर बहुत गहरा असर हुआ। उन्हीं दिनों मेवाड़ संघपति आचार्य श्री एकलिंगदास जी महाराज का भी वहीं पदार्पण हो गया। इस शुभ योग ने वैराग्य की ओर श्रीवृद्धि ही की।
आचार्य श्री के अन्यत्र विचरण करने पर भी माता पुत्र की वैराग्य-धारा क्षीण नहीं हुई।
एकदा पूज्य श्री कोशीथल विराजमान थे। वहाँ श्री मगनबाई दर्शनार्थ पहुंची और वहीं श्री मांगीलाल जी का आज्ञापत्र पूज्य श्री के चरणों में भेंट कर दिया ।।
स्वयं श्री मगनबाई भी महासती जी की सेवा में पहुंचकर ज्ञानाभ्यास करने लगी।
उत्कृष्ट भावनाओं का प्रवाह प्रायः अविकल बहता है। रुकावटें आती हैं, निकल जाती हैं। काका छोगालाल जी ने कई अवरोध भी खड़े किये, किन्तु उन्हें कोई सफलता नहीं मिली।
___ अन्ततोगत्वा वि०सं० १९७८ वैशाख शुक्ला ३ गुरुवार को रायपुर में माता और पुत्र की दीक्षा सम्पन्न हुई।
श्री मांगीलाल जी पूज्य आचार्य श्री के शिष्य तथा श्री मगनबाई वि० महासती जी फूलकुवर जी महाराज की शिष्या बनीं।
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