Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१६२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्य
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नाम घूकलचन्दजी था, और माता नवलबाई। योग्यावस्था में भूपालसागर इनका विवाह हुआ । किन्तु दाम्पत्य-जीवन अधिक नहीं टिका ।
परम विदुषी महासतीजी श्री वरदूजी के सम्पर्क से वैराग्य ज्योति जगी। वि. संवत् १६५७ में माघ शुक्ला पंचमी नामक शुभ दिन में इनकी दीक्षा सम्पन्न हुई।
कनक के समान दैदीप्यमान देह राशि से सम्पन्न, महासती के'र कुंवरजी महाराज, बड़े मिलनसार, उदार हृदय क्रियापात्र और मिष्ट भाषी थे।
मेवाड़ के अन्तर्वति क्षेत्रों में इनका बड़ा गहरा प्रचार था। हजारों भाई-बहन आज भी महासतीजी को बड़ी श्रद्धा के साथ स्मृति करते हैं।
पूज्य आचार्य श्री मोतीलालजी महाराज की सुदृढ़ आज्ञानुवर्तिनी महासती के'र कुंवरजी समाज के व्यापक । हित को लक्ष्य में रखकर उचित निर्णय करती थी।
विशाल शास्त्रीय ज्ञान से सम्पन्न महासतीजी में ज्ञान प्रचार की बड़ी लगन थी। उन्होंने सैकड़ों बहनों को बोल थोकड़ों का गम्भीर ज्ञान प्रदान किया।
पिछले कई वर्षों तक शारीरिक कारण से 'रायपुर' में स्थानापन्न रहे । रायपुर के धर्मप्रिय माई-बहनों ने बड़े उत्कृष्ट भावों से सेवा-साधी । महासतीजी के मृदुल स्वभाव से उनकी लोकप्रियता इतनी फैली कि बच्चा-बच्चा आज भी उन्हें याद करता है।
महासतीजी अधिकतर ज्ञान-ध्यान में रत रहा करती थी।
_ वि. संवत् २०११ ज्येष्ठ कृष्णा चौथ शुक्रवार को देवलोक हुए। स्वर्गवास होने से पूर्व संथारा धारण कर लिया था।
इनके नौ शिष्याएँ हुईं । कंचन कुंवरजी, दाखांजी, सौभाग्य कुंवरजी, सज्जन कुंवरजी, रूप कुंवरजी, प्रेमकुंवर जी, मोहन कुंवरजी, प्रताप कुंवरजी। कञ्चन कुंवरजी
कञ्चन कुंवरजी, भद्र परिणामी महासती थे, उनकी शिष्या चाँद कुंवरजी अभी पोटला लाखोला में विद्यमान है। दाखांजी की कोई जानकारी नहीं मिल पाई । महासतीजी श्री सौभाग्य कुंवरजी अभी सकारण रायपुर विराजित है। सरल स्वभावी श्री सौभाग कुंवरजी भींडर के हैं। महासती रूपकुंवरजी
देवरिया में पूज्यश्री के नेतृत्व में तीन दीक्षाएं एक साथ हुई, महासती रूप कुंवरजी महासती सज्जन कुंवरजी, महासती प्रेमवती जी।
श्री रूपकुंवरजी देवरिया के ही कोणरी परिवार के हैं । वाणी से मधुर एवं स्वभाव से सरल है। शास्त्रों का ज्ञानाभ्यास भी किया, व्याख्यान की भी अच्छी कला है। इनके दो शिष्याएँ हैं, श्री रतन कुंवरजी ये चिकारड़ा के हैं । और दूसरी शिष्या लामवती है ये टाटगढ़ के हैं । इनमें तपश्चर्या का विशेष गुण है। महासती सज्जन कुंवरजी
इन्होंने कोशीथल में पूज्य गुरुदेव श्री के सान्निध्य में महासतीजी श्री केर कुंवरजी के पास संयम ग्रहण किया। साथ में अपनी पुत्री कुमारी प्रेमवती को भी संयम के लिये प्रेरित किया और उसे संयम दिलाया।
खाखरमाला के श्री गणेशलालजी दक तथा चाँदबाई की संतान सज्जनजी कोशीथल विवाहित किये गये। वैराग्य की तीव्र भावना से प्रेरित हो, संयम धारण किया और अन्त तक उसे निभाया । स्वभाव से खरे, महासती सज्जन कुंवरजी बड़े जागरूक विचारों के थे ।
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