Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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घोर तपस्वी पूज्यश्री रोड़जी स्वामी | १३७
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ढालों में जो उल्लेख आया, उससे स्पष्ट निर्णय हो जाता है कि सोलह चातुर्मास उदयपुर, नौ चातुर्मास नाथद्वारा आदि सैतीस चौमासे श्री रोड़जी स्वामी के नहीं, नृसिंहदासजी महाराज के थे । ढालों की प्रतिलिपि आगे श्री नृसिंहदासजी महाराज की जीवनी के साथ संलग्न है । उससे पाठक स्वयं ही पा जाएँगे कि यह सैंतीस चातुर्मास की सूची पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के चातुर्मासों की है।
पूज्य श्री रोडजी स्वामी ने कहाँ कितने चातुर्मास किये, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। इनका स्वर्गवास कब हुआ, इसके लिये भी कोई निश्चित प्रामाणिक आधार उपलब्ध नहीं है।
श्री मानजी महाराज कृत ढालों में, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, श्री नृसिंहदासजी महाराज का दीक्षासमय वि० सं० १८५२ वणित है। उनमें एक जगह श्री रोड़जी स्वामी के उदयपुर में नौ वर्ष स्थानापन्न रहने की बात आई है। इस तरह बावन में नौ मिलाकर वि० सं० १८६१ में श्री रोड़ जी स्वामी का स्वर्गवास माना जा सकता है। किन्तु पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के दीक्षित होते ही उसी वर्ष श्री रोड़जी स्वामी स्थानापन्न रह गये, इसका कोई प्रमाण नहीं।
इसी तरह पूज्य श्री रोडजी स्वामी के स्वर्गवास की तिथि 'प्रेरक जीवनी' में फाल्गुन कृष्णा अष्टमी अंकित की गई, इसका भी कोई प्रामाणिक आधार नहीं मिला।
पूज्य श्री रोडजी स्वामी के विषय में पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज कृत जो प्रसिद्ध ढाल है, उसके अन्तिम पद्य में ढाल बनाने का समय संवत् १८४७ ऐसा प्रसिद्ध है। किन्तु पूज्य श्री मानजी स्वामी कृत ढालों से यह स्पष्ट हो गया कि पूज्य श्री सिंहदासजी महाराज जो रोड़जी स्वामी की ढाल के रचयिता हैं, उनकी दीक्षा ही १८५२ में हुई तो सैतालीस में ढाल कैसे बनी ? वास्तव में श्री रोड़जी स्वामी के स्वर्गवास के बाद बनी ढाल का समय संवत् १८६७ होना चाहिए न कि १८४७ । उपसंहार
तपस्विराज के जीवन के विषय में जितना प्रामाणिक आधार मिला, तदनुसार जीवन-परिचय की कुछ रेखाएँ अंकित की हैं । अतीत की कड़ियाँ बहुत विशृखलित हैं। फिर भी पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज रचित ढाल तथा श्री मानजी स्वामी विरचित श्री नृसिंहदासजी के गुण की ढालों से अच्छा सहयोग मिल गया ।
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एक बार एक कृशकाय कौवे ने एक बटेर से पूछा-बन्धु ! तुम इतने मोटे ताजे हो रहे हो, आखिर तुम क्या खाते-पीते हो? बटेर ने हंसकर कहा-गम खाता हूँ और क्रोध को पीता हूँ।
--अम्बागुरु-सुवचन