Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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पूज्य आचार्यश्री मानजी स्वामी
परिचय रेखाएं
मेवाड़ के जैन-जगत में सर्वाधिक यदि किसी जैन संत का नाम लिया जाता है तो वह है, 'पूज्य श्री
मानजी स्वामी ।'
श्री मानजी स्वामी एक ऐसे चमत्कारिक महापुरुषों में गिने जाते हैं कि जिनके नाम की यहाँ 'आण' लगती है । मेवाड़ की जनता में इस व्यक्तित्व के प्रति इतनी आस्था है कि उनके नाममात्र से यहाँ बन्धन टूटते हैं और विपदाएँ हटती हैं । व्याधिग्रस्त उनका स्मरण कर स्वस्थ हो जाता है । ऐसी श्रद्धा केवल जैनों में ही नहीं, हजारों अ-जैनों में भी व्याप्त है ।
श्रद्धा का यह लौकिक स्वरूप इतना गहरा है कि अरिहन्त, सिद्ध या रामकृष्ण के साथ मानजी स्वामी की मालाएँ फेरी जाती हैं, स्तवन गाये जाते हैं, उनकी स्तुतियाँ की जाती हैं ।
श्रीमानजी स्वामी का जन्म स्थान देवगढ़ मदारिया है। श्री धन्नादेवी माता का नाम था पिताश्री तिलोकचन्द्र
जी गांधी थे ।
जन्म समय अठारह सौ तिरसठ कार्तिक शुक्ला पंचमी माना जाता है । और यही ठीक लगता है । आगम के अनमोल रत्न के सम्पादकजी ने जन्म अठारह सौ तिरियासी का माना और कुल उम्र अस्सी वर्ष की मानी । इसके अनुसार उनका स्वर्गवास उन्नीस सौ तिरसठ का आता है, जो बिलकुल असंगत है, क्योंकि उन्नीस सौ सैंतालीस में पूज्य श्री एकलिंगदास जी महाराज की दीक्षा हुई तो क्या उस समय मानजी स्वामी उपस्थित थे ? मानजी स्वामी का स्वर्ग वास १९४२ में ही हो चुका था । अतः उनकी उपस्थिति का प्रश्न ही नहीं ।
अतः पूज्य श्री का जन्म समय १८६३ का ही ठीक बैठता है ।
बहुत प्राचीन समय से ही देवगढ़ जैन धर्म का अच्छा क्षेत्र रहा है। परिवार वहाँ हैं । गाँधी परिवार एक भी आज अच्छा धर्मप्रेमी और अग्रगण्य है । हैं । बचपन से ही धार्मिक संस्कार पाने से ज्योंही कुछ समझ का विकास होने लगा, मानजी का झुकाव धर्म क्रियाओं की तरफ बढ़ गया ।
आज भी जैनों के अच्छी संख्या में मानजी स्वामी इसी परिवार की दैन
उस समय मेवाड़ सम्प्रदाय के आचार्य पद पर पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज समासीन थे । वे बड़े आत्मानन्दी सत्पुरुष थे । उच्चकोटि के महात्मा थे। देवगढ़ पधारे। श्री मानजी जो अभी बहुत छोटे बच्चे थे, पूज्य श्री के निकट आये ।
आध्यात्मिकता के भी बड़े विलक्षण सिद्धान्त होते हैं । उन्हें भौतिक उपादानों से जानना संभव नहीं । न उन्हें इस तरह आँकना ही चाहिए। अतिमुक्तकुमार केवल नौ वर्ष के थे । भगवान महावीर के निकट पहुँचे, यह एक सामान्य बात थी, किन्तु अतिमुक्त में जो आध्यात्मिक परिवर्तन आया, वह असामान्य था ।
कुछ ऐसा ही परिवर्तन आया था, श्री मानजी में, पूज्य श्री नृसिंहाचार्य के सम्पर्क से । नौ वर्ष की उम्र में यों मानसिक विकास बहुत थोड़ा सा हो पाता है, किन्तु कुछ चेतनाओं की आध्यात्मिकता ऐसी विलक्षण होती है, जो गागर में सागर को चरितार्थ करती है । तन छोटा होता है, किन्तु भावों की उड़ान बहुत ऊँची होती है । कुछ ऐसा ही बना श्री मानजी स्वामी के जीवन में उस समय । वय तो उनकी छोटी थी, किन्तु विचार जो उनके बने वे बड़े कान्ति
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