Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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कविराज श्री रिषभदास जी महाराज | १५५
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इनके अतिरिक्त इनके द्वारा लिखित एक रचना और उपलब्ध हुई है-'चार रजपूतां री वात' ।
श्री रिखबदासजी महाराज की विविध अभिरुचियों तथा प्रबन्धों को देखते हुए लगता है कि साहित्य, काव्य तथा अन्य क्षेत्रों में इनकी और भी कई उपलब्धियाँ होंगी। किन्तु शास्त्र-भण्डारों की अव्यवस्था, रखरखाव की उपेक्षा आदि कारणों से कृतियाँ या तो विनष्ट हो गई या अज्ञात स्थानों पर पड़ी हैं, जो देखने में नहीं आ सकीं।
अब इस तरफ पर्याप्त ध्यान गया है। अतः भविष्य में इस महामुनि की और कृतियाँ उपलब्ध होने की सम्भावना है।
कविराज श्री रिखबदासजी महाराज का जीवन एक सुन्दर, सक्रिय तथा सारपूर्ण जीवन रहा । ढालों-स्तवनों को देखते हुए उनका विचरण-क्षेत्र मारवाड़, मेवाड़ तथा मालवा तो रहा ही, अन्य क्षेत्रों में भी उनका विचरण रहा होगा, ऐसा अनुमान है। कविराजजी के शिष्य कितने रहे, इस बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। किन्तु बालकृष्णजी महाराज, वेणीचन्द्रजी महाराज, मालचन्दजी महाराज आदि तो इनके शिष्य रहे ही हैं-(बालकृष्ण जी और मालचन्दजी का श्री रिखबदासजी के साथ का हस्तलिखित चित्र उपलब्ध है)।
प्रतीत होता है कि पूज्य श्री नृसिंहदासजी महाराज के स्वर्गवास के बाद मेवाड़ मुनिसंघ की एकता का सम्भवतः वैसा रूप नहीं रहा, जैसा चाहिए । कारण स्पष्ट है कि कबिराज श्री रिखबदास जी महाराज के समय में लिखी गयी संक्षिप्त और बड़ी पट्टावलियों में श्रीमानजी स्वामी का कहीं नामोल्लेख नहीं है। ऐसा अनुमान होता है कि पूज्य श्रीमानजी स्वामी और तपस्वी श्री सूरजमलजी महाराज के सिंघाड़े अलग-अलग रहे होंगे। उस स्थिति में भी पूज्य श्री मानजी स्वामी का वर्चस्व बहुत बड़ा और व्यापक था, इसमें कोई सन्देह नहीं।
जब पूज्य श्रीमानजी स्वामी का स्वर्गवास हो गया तब मेवाड़ संघ का नेतृत्व कविराज श्री रिखबदासजी महाराज का रहा। स्वर्गवास
__ यों तो श्री रिखबदासजी महाराज के स्वर्गवास के विषय में कोई लिखित उल्लेख ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल पाया । संवत् १६६८ में छपी एक पुस्तिका अवश्य मिली है-'पूज्य-पद प्रधान करने का ओच्छव'। इसमें श्री रिखबदासजी महाराज का स्वर्गवास संवत् १९४३ में नाथद्वारा में होना लिखा है। किन्तु यह विश्वसनीय नहीं है।
संवत् १६४२ में मानजी स्वामी का स्वर्गवास और संवत् १६४३ में श्री रिखबदासजी महाराज का स्वर्गवास यों छोटी-सी अवधि में दो महामुनिराजों का स्वर्गस्थ हो जाना मेवाड़ संघ के लिए एक असहनीय बड़ा धक्का था। किन्तु काल की विचित्रता के समक्ष सभी विवश थे ।
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जैसे दिनकर के विना दिन नहीं, गुल के विना गुलशन नहीं, जल के बिना नलिन नहीं, वैसे ही सम्यकदर्शन के बिना सम्यकजीवन नहीं।
-'अम्बागुरु-सुवचन'
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