Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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६
श्री
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बालकृष्ण
जी महाराज
पूज्यनीय श्री रिखबदासजी महाराज के प्रधान शिष्यों में श्री बालकृष्णजी मुख्य हैं । किन्तु श्री रिखबदासजी महाराज के जीवन-वृत्त के समान इनका जीवन-वृत्त भी अतीत की गहराइयों में छुपा हुआ है । ये श्री रिखबदासजी महाराज के शिष्य थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
श्री बालकृष्णजी महाराज का जन्म, दीक्षा आदि के लिए अभी प्रामाणिक तथ्य अपेक्षित हैं । 'ओच्छव' पुस्तिका से ज्ञात होता है कि इनका विचरण गुजरात-काठियावाड़ में अधिक रहा। यह बात तर्कसंगत भी है । इसका प्रमाण निम्नांकित अनुश्रुति है, जो बड़ी व्यापक है ।
बात रह गई
कहते हैं, एक बार श्री बालकृष्णजी महाराज अपने शिष्यों सहित मोरबी ( काठियावाड़) में विराजित थे । उनके प्रवचनों का चतुर्दिक बड़ा प्रभाव था । उपदेशों में राजमहलों से झोंपड़ी तक के लगभग सभी वर्गों के व्यक्ति भाग लिया करते थे । मोरबी दरबार मुनिश्री से बड़े प्रभावित थे । नगर में जैन धर्म की जबरदस्त प्रभावना हो रही थी। व्यक्ति को कर्त्तव्यविमूढ़ करने में यह बड़ा सशक्त है ।
जनगण जहाँ अपूर्व ज्ञानामृत का पान कर रहा था, वहीं
साम्प्रदायिक विद्वेष भी एक मानसिक विष है। धर्मान्धता के कारण अनेकों बार यह धरती रक्त-रंजित हुई । जैन धर्म के प्रबल प्रभाव से प्रभावित मोरबी का एक सूवेदार, जो मुस्लिम था, हिन्दू धर्म की यह जाहोजलाली देख मन ही मन जल-भुनकर राख हुआ जा रहा था । वह यन्त्र-मन्त्रवादी एक क्रूर स्वभाव का व्यक्ति था । वह हिन्दुओं का कट्टर द्वेषी तथा एक उदंड मुसलमान था । श्री बालकृष्णजी महाराज का प्रबल प्रभाव उसके लिए असह्य था । वह ऐसे अवसर की तलाश में था, जिसमें उस महान साधु की खिल्ली उड़ा सके ।
एक दिन राजमहलों से दो साधुओं को उसने निकलते देखा तो उसे अपना सपना सच्चा करने का अवसर मिल गया । उसने अपना मन्त्र-प्रयोग करते हुए दोनों साधुओं को रोका ।
उसने पूछा - " महाराज इसमें क्या है ?"
"आहार है !" मुनिराज ने सरलता से उत्तर दे दिया ।
सूबेदार कहने लगा- “ महाराज बड़े चालाक हैं । राजमहलों से माँस लाये हैं और हमें मूर्ख बना रहे हैं ।
नियों के यहाँ माँस कहाँ ? माँस तो महलों में ही मिल सकता है ।"
मुनि ने कहा- "झूठा अपवाद मत करो।"
सूबेदार ने कड़ककर कहा - "महाराज ! झूठे तो तुम हो ! यदि तुम सच्चे हो तो पात्र दिखाओ !"
सूबेदार और मुनि के वार्तालाप के साथ ही कई नागरिक वहां जुड़ आये थे ।
१ " पूज्य श्री रिखबदासजी तथा सिख बालकृष्णजी” – बड़ी पट्टावली ।
" लिपीकृत पुज श्री श्री १००८ श्री श्री श्री रिखबदासजी महाराज तथ श्री श्री श्री श्री १०७ श्री श्री श्री बालक्रस्न जी महाराज" -बड़ी पट्टावली ।
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