Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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१
घोर तपस्वी पूज्यश्री रोड़जी स्वामी
परिचय रेखा
मेवाड़ की पुण्य धरा पर त्याग, तप तथा संयम स्वरूप त्रिपथगामिनी गंगा को अवतरित और प्रवाहित करने वाले सत्पुरुषों में पूज्य श्री रोड़ीदासजी महाराज का नाम सचमुच भागीरथ जैसा है ।
घोर तपस्वीजी के नाम से प्रसिद्ध श्री रोड़जी स्वामी का जन्म माहोली - नाथद्वारा के मध्य स्थित 'देवर' नामक ग्राम में हुआ। लोढ़ा गोत्रीय श्री डूंगरजी तथा राजीबाई इनके पिता व माता थे । जन्म समय १८०४ के
लगभग था ।
मेवाड़ में कूड़ा-करकट के इकट्ठे किये ढेर को 'रोड़ी' कहते हैं। माता-पिता ने बालक का नाम रोड़ीलाल रखा । मेवाड़ में ऐसा नाम किसी दुर्लभ पुत्र का रखने की पद्धति है ।
कई मनौतियों के बाद किसी निःसन्तान को यदि पुत्र मिल जाए तो उसको किसी की कुदृष्टि न लगे, इस विचार से उसका 'कचरामल', 'रोड़ीलाल', इस तरह के अशोभन नाम रखे जाते हैं। श्री रोड़ीलालजी भी अपने मातापिता की दुर्लभ सन्तान होंगे, तभी उनका नाम 'रोड़ीलाल' रखा गया ।
इससे यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि श्री रोड़ीलालजी अपने माता-पिता की निःसन्देह प्रिय सन्तान थे । लालन-पालन भी उसी स्तर से हुआ होगा । श्री रोड़ीलालजी लगभग बीस वर्ष के होंगे। देपुर में श्री हीरजी
स्वामी का पदार्पण हुआ ।
श्री हीरजी स्वामी बड़े तपस्वी तथा प्रभावक सन्त थे । उनका यद्यपि बहुत थोड़ा सम्पर्क श्री रोड़जी को मिला, किन्तु रवि- किरण से जैसे कमल अनायास ही खिल जाया करते हैं। ऐसे ही मुनिश्री के तनिक सम्पर्क ने ही रोड़जी के अन्तर को एक नई दिशा में प्रेरित कर दिया, वह नई दिशा वैराग्य की थी।
आग्रह यदि सत्य होता है तो उसमें एक तेजस्विता होती है । सांसारिकता और प्रलोभन उसके समक्ष तुच्छ हो क्षीण हो जाया करते हैं ।
माता-पिता और पारिवारिकजनों ने उन्हें सांसारिकता में बाँधने का प्रयत्न किया ही होगा, किन्तु वे असफल रहे ।
उसी वर्ष अर्थात् अठारह सौ चौबीस में श्री रोड़जी ने श्री हीर मुनिजी के पास संयम ग्रहण किया ।
१ "प्रेरक जीवनी” के लेखक ने हीरजी महाराज को रोड़जी स्वामी का गुरु माना । लेखक के पास इसका क्या प्रमाण है, यह तो ज्ञात नहीं, किन्तु प्रेरक जीवनी और आगम के अनमोल रत्न में श्री सुखजी स्वामी का उल्लेख हीरजी के गुरु के रूप में किया तथा हीरजी को श्री रोड़जी स्वामी का गुरु बताया। परम्परागत पट्टावलियों में कहीं भी उक्त दोनों मुनियों का नाम देखने में नहीं आया । संवत् ११३८ की गुलाबचन्दजी महाराज द्वारा लिखित पट्टावली में भी " पुरोजी का रोड़ीदास" ऐसा लिखा है ।
एक छोटी पट्टावली का पत्र रिखबदासजी महाराज तक का लिखा मिला। उसमें भी पट्ट- परम्परा के अनुसार १०३ पर, पूरोजी १०४ पर रोड़ीदासजी । इस उल्लेख से भी श्री रोड़जी स्वामी के गुरु पूरणमलजी महाराज (पूरोजी) होना सिद्ध होता है। प्रस्तुत निबन्ध में श्री सुखजी स्वामी तथा हीरजी स्वामी का गुरु रूप में उल्लेख केवल प्रेरक जीवनी के आधार से अंकित किया गया है।
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