Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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८० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
घूमे ।
चूमे ॥
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(११) मारवाड़, मेवाड़, मालवा,
महाराष्ट्र भी गुर्जर और सौराष्ट्र देशने,
चरण आपके
(१२) श्रमण संघ के बने प्रवर्तक,
शोभा मारी मुक्त कंठ से भक्त लोग हैं,
करते बहुत
पाई।
बड़ाई।
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संघ संगठन के मतवाले,
साधक सन्त निराले । मान, बड़ाई, अहंभाव से,
छल से बचने वाले ।।
(१४) बाह्य और अन्तर में अन्तर,
नहीं आपके देखा। क्रोध-क्लेश की राग-द्वेष की,
नहीं कहीं पर रेखा ॥
(१५) . स्थानक वासी जैन जगत की,
दुर्लभ है इक थाती। देख आपकी त्याग तपस्या,
गज पर होती छाती॥
(१८) मंगलमय स्वाध्याय शास्त्र का,
करते ही हैं रहते । शास्त्र पठन बिन संयम सूना,
शेर बबर वन कहते ॥
(१६) शास्त्रों के स्वाध्याय-योग का,
जिसने लिया सहारा । पाप उसे हर खारा लगता,
लगता संयम प्यारा ॥
(२०) बिना भाग्य न शास्त्रों में रुचि,
कभी किसी को होती। शास्त्र सिन्धु में गोते से ही,
मिलते मँहगे मोती ।।
(२१) स्वयं रहे तिर साथ विश्व का,
बेड़ा तार रहे हैं। भक्त जनों पर अनगिनती ही,
कर उपकार रहे हैं।
(२२) ऐसे परम मुनीश्वर हित सब,
यही कामना करते। रहें विश्व का मंगल करते,
लाखों वर्ष विचरते ॥
(२३) संयम उनका सदा सवाई,
दमक दिखाता जाये। परम पुनीत प्रकाश जगत यह,
जिससे पाता जाये ॥
(२४) जहाँ करें मेवाड़ी उनके,
संयम का अभिनन्दन । करता है अभिनन्दन यह भी,
पंजाबी "मुनि चन्दन" ॥
वर्ष बहत्तर के हैं फिर भी,
कहाँ आप में सुस्ती। जीवन में भी संयम में भी,
पहले जैसी चुस्ती ॥
बतलावे ।
पाँच सात हों तब तो कोई,
गणना कर नहीं आपके पार गुणों का,
कोई कैसे
गावे ॥
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