Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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1 डॉ० बसन्त सिंह [प्राध्यापक-भूगोल विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर]
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गुरुदेव श्री की जन्मभूमि एवं साधना-भूमि मेवाड़ का आन्तरिक आध्यात्मिक स्वरूप समझने के पूर्व उसकी महत्त्वपूर्ण भौगोलिक संरचना एवं उपलब्धियों का एक लोखा-जोखा विद्वान् ।
लेखक द्वारा प्रस्तुत है। 4-0-0--------------------------0-0-0-0--0--0--0-15
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मेवाड़ : एक भौगोलिक विश्लेषण
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स्थिति
अरावली पर्वत शृखला की गोद में स्थित यह सकरा एवं एकाकी भूभाग अपनी विशिष्ट प्रकार की भौतिक संरचना के कारण राजस्थान के राजपूतों के गौरवमय इतिहास का जनक बना रहा । २३°०४६' से २५०.५८' उत्तरी अक्षांशों तथा ७३०.१५ से ७५०.४६' पूर्वी देशान्तरों के मध्य ४७३७२ वर्गमील का यह स्थलखण्ड राजस्थान राज्य के दक्षिण में स्थित है। उत्तर-दक्षिण १२० मील तथा पूर्व-पश्चिम इसका अधिकतम विस्तार ६० मील है । अत्यन्त प्राचीन काल से यह एक राजनैतिक इकाई के रूप में विकसित रहा है जिसके पश्चिम में अरावली पहाड़ियाँ, दक्षिण में गुजरात राज्य के बनासकांठा तथा सावरकांठा जनपदों के हिस्से, पूर्व में चम्बल एवं हाड़ौती प्रदेश तथा उत्तर में अंग्रेजों के समय में गठित एवं विशेषाधिकार प्राप्त अजमेर जनपद इसकी सीमायें बनाते हैं। यह मेवाड़ प्रदेश, उदयपुर डिवीजन के नाम से भी जाना जाता है । जिसमें राजस्थान के पांच जिले-उदयपुर (१७२६७ व. मी.), चित्तौड़गढ़ (१०८५८ व. मी.) भीलवाड़ा (१०४५० व. मी.), डूंगरपुर (३७७० ब. मी.) तथा बाँसवाड़ा (५०३७ व. मी.) सम्मिलित हैं।
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उच्चावचन
इस प्रदेश के भौतिक स्वरूप की संरचना मुख्य रूप से अरावली पहाड़ियों से होती है। ये पर्वत श्रेणियाँ टरसीयरी युग की बनी एवं लगातार पर्वत शृंखला के रूप में पाई जाती हैं। इसमें परतदार एवं परिवर्तित चट्टानों की अधिकता है। इनकी अधिकतम ऊँचाई माउण्ट आबू (१७२७ मीटर) में है। स्थानीय रूप से यह भूभाग भोरट पठार (१२२५ मीटर) के नाम से प्रसिद्ध है। दक्षिण-पूर्व में उदयपुर के आसपास इन पहाड़ियों में अनेक पर्वत प्रक्षेपात एवं वक्राकार कटक स्थित हैं । कतिपय चोटियों की ऊँचाई १२२५ मीटर से भी अधिक है और देखने में दीवार की भाँति प्रतीत होते हैं । अरावली की भौमिकी डकन ट्रैप से मिलती है । उदयपुर, डूंगरपुर तथा बाँसवाड़ा में अरावली क्रम से सम्बन्धित शिष्ट चट्टानें पाई जाती हैं । चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाड़ा में डकन ट्रंप की चट्टानें, शेष भागों में बुन्देलखण्ड की नीस, तथा दिल्ली क्रम की चट्टानें पाई जाती हैं । कुछ भागों में विन्ध्यन चट्टानें भी पाई जाती है । मेवाड़ की पहाड़ियाँ
मावली, राजसन्द तथा बल्लभनगर को छोड़कर सम्पूर्ण उदयपुर जनपद, दक्षिण-पूर्वी पाली एवं गुजरात राज्य के कुछ भागों में फैली हुई हैं । भौगोलिक दृष्टि से बिचार करने पर सम्पूर्ण पर्वत श्रेणियाँ एक प्रकार के समतल शिखर एवं समप्राय भूमि के अवशिष्ट प्रतीत होती हैं । इस प्रदेश के सतह निर्माण में अनाच्छादन, दैनिक तापान्तर एवं बालूभरी हवाओं का अधिक हाथ रहा है। इस पर्वत शृखला से निकलने वाली नदियों में से बनास माही तथा खारी सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। बनास मध्यवर्ती मैदान से दक्षिण की तरफ प्रवाहित होती हुई अधिकांश भाग के लिए लाभप्रद है। परतन्त्रता के विरोध में लड़ा गया ऐतिहासिक हल्दी घाटी का युद्ध इसी नदी के किनारे पर हुआ था। खारी नदी
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