Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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श्रद्धार्चन एवं वन्दना | ५५
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पं० भारमल जी महाराज को संसारावस्था में प्रतिबोध देने मान, माया, परिग्रह, स्त्री आदि दोषों का परित्याग कर वाली त्याग-वैराग्य की जीती-जागती प्रतिमूर्ति परम विदुषी विकारों का दमन करते हुये विचरते हैं। मेरी सद्गुरुणी श्री सोहनकुवर जी महाराज थी। उनके जब-जब मैं इस गाथा की स्वाध्याय करता हूँ, इस पर प्रस्तुत उपकार को वे जीवन भर विस्मृत नहीं हुए थे। मनन करता हूँ तो मेरे पूज्य भ्राता परम श्रद्धेय श्री अम्बाश्री अम्बालाल जी महाराज से जब भी हम मिले वही लाल जी महाराज का तपःपूत पवित्र जीवन मेरे अन्तर स्नेह सद्भावना हमें देखने को मिली।
पट पर उभर आता है। शास्त्रोक्त, इस गरिमा का मूर्त मुनि श्री अम्बालाल जी महाराज को थोकड़े, बोलचाल स्वरूप इस युग में मिल पाना एक कठिनाई है किन्तु आपकी अधिक प्रिय हैं, मेरी मातेश्वरी महासती प्रभावती जी उपस्थिति ही मेरा तत्काल समाधान कर देती है। महाराज को भी बहुत थोकड़े कण्ठस्थ हैं। जब प्रश्नोत्तर सरल, सात्त्विक तथा सुदृढ़ संयमानुरागी मेरे पूज्य गुरु चलते हैं तो उनकी प्रतिभा का चमत्कार देखते ही बनता भ्राता के दीर्घ जीवन की मंगल कामना के साथ श्रेष्ठ है। माता जी महाराज के साथ आपकी अनेक बार चर्चाएँ संयम जीवन का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। विचारणाएँ हुई है । आप सच्चे जिज्ञासु की भाँति चर्चा करते हैं, और सत्य-तथ्य को बिना किसी संकोच के स्वी
साध्वी श्री प्रेमवती जी कार कर लेते हैं। ___मुझे प्रवर्तक मुनिश्री से अनेक बार वार्तालाप करने का परम पूज्य गुरुदेव श्री के प्रति श्रद्धार्पण के लिए, अवसर मिला है। कभी-कभी तात्त्विक रहस्य को बताने के मुनि श्री कुमुदजी महाराज ने मुझे दो शब्द लिखने को लिए आप राजस्थानी छोटी-छोटी कथाओं का प्रयोग करते कहा तो मैं मन ही मन भावना के एक ऐसे स्तर पर पहुँच हैं और उसके माध्यम से उन गम्भीर तथ्यों को प्रकट गई जिसे अभिभूत होना कहा जा सकता है। करते हैं।
मन की अभिभूतावस्था में हर्ष और प्रेम के मिश्रित आज का श्रमण बड़े-बड़े शहरों में रहना पसन्द करता मावों का संचार रहता है और उसी तन्ययता में एक है । जहाँ पर हर प्रकार की सुविधाएँ हैं पर आपको मेवाड़ सुदूरवर्ती अतीत मेरे अन्तर नयन में घूम गया। के छोटे-छोटे गाँव पसन्द हैं, आप उनमें विचरण करना अतीत में जब मैं बहुत छोटी थी। मेरी माँ के साथ अधिक पसन्द करते हैं। यही कारण है कि मेवाड़ की प्राय: मुनिराज महासतीजी के दर्शन करने को जा आया ग्राम्य जनता आपको हृदय से प्यार करती है, आप मेवाड़ करती थी। के गाँवों में जहाँ भी जाते हैं वहाँ पर नव चेतना, नवी
मेवाड़ सम्प्रदाय के आचार्य प्रवर पूज्य श्री मोतीलाल जागृति का संचार हो जाता है।
जी महाराज को हम ही नहीं हमारा परिवार गाँव यहाँ मेरी तथा मातेश्वरी प्रभावती जी महाराज की यह तक कि हमारे आसपास के सारे गाँवों के नर-नारी बड़ी हार्दिक मंगल कामना है कि आप दीर्घकाल तक स्वस्थ व श्रद्धा से मान्यता देते थे। प्रसन्न रहकर खूब जिनशासन की सेवा करें । ज्ञान-दर्शन
उनका व्यक्तित्व प्रभाव भी बड़ा जबरदस्त था । चारित्र की अभिवृद्धि करते हुए धर्म की प्रभावना करें।
वाणी में जादू था और सम्प्रदाय के आचार्य भी थे, इन
सभी कारणों से जब आचार्य श्री अपनी शिष्य मण्डली मुनि श्री इन्द्रमल जी
सहित हमारे गाँव कोशीथल की तरफ पधारते तो कई [गुरुदेव श्री के गुरुभ्राता]
दिनों पहले हमारे यहाँ बड़ी हलचल मच जाती। कई
मील दूर होते, वहीं, हमारे वहाँ से बहुत से भाई-बहन छज्जीवकाए अ समारभंता,
विनती करने को पहुँच जाते, यह क्रम कई दिनों तक मोसं अदत्तं च असेवमाणा।
चलता। परिग्गहं इथिओ माण मायं,
ऐसी कई विनतियों में माँ के साथ मैं भी गई, तो मुझे एवं परिण्णाय, चरंति दंता॥
हर बार बड़ी खुशी होती। ऐसी खुशी जैसे किसी बच्चे -सत्पुरुष छहकाय जीवों की रक्षा करते हुए मृषा, अदत्त को किसी मेले में जाने पर होती। वास्तव में वह धर्म का
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