Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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५४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ
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के मूर्धन्य व कर्मठ कार्यकर्ता, मरुधर केसरी जी महाराज - महासती श्री शीलवती जी भी ४६-५० दिन को मानने वाले थे पर आप श्री की
वीतराग भगवान महावीर के शिष्य परम्परा की चुनौति के कारण उन्हें घुटने टेकने पड़े और अपने विचारों
सतत् निर्मलधारा चिरावधि से प्रवाहित हो रही है। को संगठन की दृष्टि से बदलना पड़ा। यह है आपके सत्या
जिसमें अनेकानेक आत्माओं ने मज्जन कर स्व व परात्मा ग्रह और संकल्प की महान् शक्ति का चमत्कार जिसके
को परम रूप दिया है। वे महानता के उच्च शृग पर कारण अल्पमत की बहुमत पर विजय हुई।
आज भी ज्योतिपुंज के रूप में समस्त जगत का पथ-प्रदर्शन मैं ऐसे दृढ़ संकल्प के धनी-मुनि के चरणों में शतश: वन्दन के साथ यही प्रार्थना करता हूँ कि आप युग-युग
कर रहे हैं। इसी परम्परा में पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल
जी महाराज साहब को भी गिना जाता है। जिन्होंने अत्यन्त तक जीते रहें और अपनी संकल्प शक्ति के चमत्कार से
अल्पायु में ही अपने लिए साधना एवं संयम का कठोर विश्व को सत्य का रास्ता दिखाते रहें।
मार्ग अपनाया और उस मार्ग पर गत् ५० वर्षों से अविरल
स्वात्मा व परात्मा के कल्याण हेतु प्रयत्नशील हैं। साध्वी श्री चन्द्रावती
इस दीर्घावधि में पूज्य प्रवर्तक श्री ने न केवल जैन [चिन्तनशील लेखिका, कवियित्री]
जगत वरन् सम्पूर्ण मानव-जीवन को सम्प्रति-काल की सफलता का मूल-मन्त्र है-ध्येय सिद्धि । जो व्यक्ति भौतिकवादी विषमताओं से मुक्ति दिलाने का भरसक अपने ध्येय की प्राप्ति करते हैं उनसे सारा विश्व आकृष्ट प्रयत्न किया है। वे विनय के भण्डार हैं, गाम्भीर्य के समुद्र होता है, जैसे वन में खिले कमल पर लाख-लाख मधुप हैं, ज्ञान-विज्ञान के आगार हैं, संयम के कन्चन हैं, तप के निछावर होते हैं । मेवाड़ के महाघ सन्त रत्न पूज्य श्री अटल हिमालय हैं और पुण्य के निर्मल स्रोत हैं । अम्बालाल जी महाराज एक ऐसे ही अध्यात्म योगी हैं। ऐसी निर्मल आत्मा का अभिनन्दन स्वत: प्रशंसनीय है। आत्म-साधना ही उनके जीवन का लक्ष्य है । उस लक्ष्य पर मैं परम पूजनीय प्रवर्तक श्री के इस अभिनन्दन-ग्रन्थ प्रकावे जीवन के प्रथम चरण अर्थात् अपनी नन्हीं सी आयु में ही शन के शुभावसर पर कामना करती हूँ कि पूज्य प्रवर्तक चल पड़े और अब ५० वर्ष की दीर्घ आयु तक एक ही श्री का जीवन चिरायु होकर विश्व की संतप्त मानवता को लक्ष्य पर एक लगन से निरन्तर बढ़ रहे हैं। वस्तुतः ऐसे शान्ति प्रदान करें; हमारा पथ-प्रदर्शन करता रहे और पारंगत आत्म-साधक कोटि-कोटि बधाई के पात्र हैं । उनकी स्व-कल्याण तथा परहित के परम लक्ष्य का प्राप्त करें। साधना स्तुत्य है, प्रशंसनीय है।
पूज्य प्रवर्तक श्री के ५० वें वर्ष की सफलता में प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ उनके त्याग, साधना व संयम-मय साध्वी श्री पुष्पवती, 'साहित्यरत्न' जीवन का समुचित सम्मान है । जो इस भौतिक युग के
पण्डित प्रवर सन्त-मानस प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी अन्धकार में आध्यात्मिक ज्योति की स्वर्ण रश्मियाँ विकीर्ण करेगा। और युग-युग के आत्म-साधकों के लिए प्रकाश
महाराज स्थानकवासी जैन समाज के एक जाने माने और
पहचाने हुये सन्त रत्न हैं। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्तम्भ बनकर पथ-प्रदर्शन करता रहेगा। इसी अभिलाषा पूर्वक मैं इन तुच्छ शब्द सुमनों की श्रद्धा सुरभित माला से
इन्द्रधनुष के समान मनमोहक है। जिसमें ज्ञान-दर्शन,
चारित्र, तप और त्याग के विविध रंग जगमगा रहे हैं, श्रद्धार्चन करती हूँ। वे युग-युग जीएँ और अध्यात्म का
जिन्हें देखते हुए आँखें अघाती नहीं, मन मरता नहीं । आलोक प्रदान करके स्वपर के हित साधक बनें। उनके
भगवान महावीर के आदर्श सिद्धान्त उनके जीवन के कणद्वारा यह मेदपाठ गौरवान्वित है। एक संस्कृत सूक्ति के
कण में मुखरित हो रहे हैं । वे साधुता के शृगार हैं, मानअनुसार
वता के दिव्यहार हैं। ऐसे सन्त का अभिनन्दन ग्रन्थ "कुलं पवित्र जननी कृतार्था, वसुन्धरा पुण्यवती च तेन ।
प्रकाशित होने जा रहा है, यह एक प्रसन्नता की बात है। अपारे संसारे लीनं
जहाँ तक मुझे स्मरण है कि अम्बालाल जी महाराज परे ब्रह्मणि यस्य चेतः ।।"
के सद्गुरुदेव का नाम पं० भारमल जी महाराज है।
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