Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ अपनी और से... ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी म. "श्रमण" आगमो के प्राण तीर्थकर है। ओर शब्दों में वर्णन कर्ता गणधर भगवान होते है। श्रमण भगवान महावीर ने देशना में जो कुछ उद्घोषित किया उसे गणधर भगवन्तोंने स्मरण रखा। गणधर भगवन्तों से श्रवण कर के स्थविर भगवन्त उसकी रचना करते है। गणधर कृत आगम अंग प्रविष्ट एवं स्थविर कृत आगम अनंग प्रविष्ट अर्थात् अंग बाह्य... भगवान के मुख्य शिष्य गणधर भगवान होते है एवं चतुर्दश पूर्वी या दश पूर्वधर स्थविर होते है। किन्तु गणधर कृत भाषित और स्थविर घोषित आगमों का आधार तो तीर्थकर परमात्मा ही है। आगमों की वाचना पांच बार हुई है। प्रथम वाचना: श्रमण भगवान महावीर स्वामीजी के 160 वर्ष पश्चात हुई। द्वितीय वाचना: श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण के 300 वर्ष बाद उड़ीसा प्रान्तः याने अंगदेश में तत्कालीन देश के कुमारी पर्वत पर समाट खरवेल के समय हुई। तृतीय वाचना : श्री वीर निर्वाण के 827 वर्ष पश्चात् अर्थात् ईशा की तीसरी शताब्दी में मथुरा में हुई। इसका नेतृत्व आचार्य स्कन्दिल ने किया। चतुर्थ वाचना : तृतीय वाचना के समकालिन है। पंचम वाचना : श्री वीर निर्वाण के 980 वर्ष बाद याने आचार्य स्कन्दिल की माधुरी वाचना और आचार्य नागार्जुन की वाचना के 150 वर्ष बाद में देवर्धिगणि क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में पुनः वाचना हुई। इस प्रकार आगम शास्त्र का अध्ययन करने पर पांच बार आगम वाचनाओं का आधार