Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री आचारांग सूत्र के अध्ययन से उपलब्ध हुआ पंचाचार स्वरूप गुण-धन निश्चित हि प्रज्वलित दीपक की तरह अनेक बुझे हुए दीपकों को प्रज्वलित करता है... अर्थात् अनेक भव्य जीवों में पंचाचार-गुण-धन के प्रदान के द्वारा अनंतानंत जीवों को अव्याबाध अविचल आत्मिक सुख का हेतु बनता है... इस ग्रंथ के निर्माण एवं संपादन में अतीव सावधानी रखी गइ है, तो भी जहां कहिं अपूर्णता प्रतीत हो वहां क्षमाशील सज्जन साधु-संत परिपूर्णता करे यह हि हमारी नम प्रार्थना है.. .क्योंकि- सज्जन लोग सदा गुणयाही होतें है एवं शुभ पुरुषार्थ के प्रशंसक होते हैं... . इस ग्रंथ के प्रथम भाग की प्रस्तावना डा. रमणभाइ सी. शाह के द्वारा उपलब्ध हुइ है, कि- जो बहोत हि श्रम से व्यंथ के सार स्वरूप प्रस्तावना लीखी गइ है... प्रस्तावना ग्रंथ में प्रवेश करने का द्वार है, अतः कोइ भी ग्रंथ का अध्ययन प्रारंभ करने के पूर्व प्रस्तावना पढी जाती है... इस ग्रंथ का मुद्रण कार्य उत्तर गुजरात के पाटण नगरमें दीप ओफसेट के मालिक परीख हितेशभाइ ने पूर्ण सावधानी से कीया है... एवं कम्प्युटर लिपि कला मून कम्प्युटर के मालिक मनोजभाइ ठक्कर ने बहोत हि परिश्रम के साथ प्रस्तुत की है... अतः हम उन दोनों महानुभावों के श्रम को नहि भूल पाएंगे... __ इस व्यंथ के निर्माण एवं संपादन कार्य में पाटण खेतरवसी श्री भुवनचंद्रसूरि ज्ञानमंदिर के व्यवस्थापक ट्रस्टी श्री विनोदभाइ झवेरी एवं पं. श्री रमणीकभाइ ने उपयुक्त पुस्तक प्रत इत्यादि सहर्ष प्रदान कर अपूर्व सहयोग दीया है... . इस महान् व्यंथ के संपादन कार्य में अनेक सज्जनों का सहयोग प्राप्त हुआ है, उनमें से भी प्रेस मेटर एवं प्रुफ संशोधनादि कार्यों में विदुषी साधनादेवी आर. हरिया तथा चि. पुत्र निमेष, ऋषभ एवं अभयम् का सहयोग सराहनीय है... अंत मे श्री श्रमण संघ से करबद्ध नम निवेदन है कि- इस महान ग्रंथरत्न का आत्म विशुद्धि के लिये उपयोग करें एवं संपूर्ण विश्व के सकल जीव पंचाचार की सुवास को प्राप्त करें ऐसा मंगलमय आशीर्वाद देने की कृपा करें... -: निवेदक :लीलाधरात्मज रमेशचंद्र हरिया... संस्कृत-प्राकृत व्याकरण काव्य न्याय साहित्य तीर्थ. 3/11, वीतराग सोसायटी. पी. टी. कोलेज रोड. पालडी, अमदावाद-3८०००७ फोन : (079) 6620838