Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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अष्ठमोध्यायः
(१३
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विवाद मे पड़ा हुआ संसारी जीव हैं (उपनय) तिस कारण कर्मके योग्य हो रहे पुद्गलोंका ग्रहण करता रहता है (निगमन) यों प्रतिज्ञा किये जा चुके "संसारी जीव: कर्म योग्यान् पुद्गलानादत्ते सकषायत्वात् " का उपसंहार उस आदत्ते क्रियासे समझ लेना चाहिये, अतः उन कर्मोंका समरस होकर एकक्षेत्रावगाह अनुसार सर्वांग उपश्लेष हो जाना बंध है, जैसे कि मद्य बनने योग्य भाजनमे धर दिये गये बीज, फूल, फल, धान्यों की बधकर मदिरा परिणति हो जाती है, उसी प्रकार आत्माके कषायों के अनुसार बंधे हुये कर्म योग्य द्रव्योंकी ज्ञानावरण आदि कर्मस्वरूप परिणतियां हो जाती है। हल्दी और चुने का बंध हो जानेपर तीसरा ही रूप हो जाता है । जल और घृत को अनेक बार फेट कर मिला देनेसे अ य विष परिणतियां उपज जाती हैं, दो वायुयें मिलकर न जाने क्या भयंकर, अभयंकर स्वरूपोंको धार लेती हैं।
सवचनमन्यनिवत्त्यर्थ, कर्मणो योग्यानां सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहिनामनंतानामावानादात्मनः कषायाःकृतस्य प्रतिप्रदेश तदुपश्लेषो बंधः स एव बंधो नान्यः संयोगमात्र स्वगुण विशेषसमवायो वेति तात्पर्यार्थः कषायाों कृते जीवे कर्मयोग्य पुद्गलानां कर्मपरिणामस्य भावाद्गुडोदकधातकीकुसुमाद्या भाजनविशेषे मदिरायोग्यपुद्गलानां मदिरापरिणामवत् ।
इस सूत्रमे स शब्द का कथन तो अन्यको बंध होनेकी निवृत्ति करने के लिये है। कर्मपरिणति के योग्य हो रहे और सूक्ष्म होकर आत्मा के ही एक क्षेत्र में अवगाह कर रहे अनन्तानन्त पुद्गलोंका ग्रहण करनेसे कषायों करके गीले किये जा रहे आत्माके प्रत्येक प्रदेश पर उन पुद्गलोंका संश्लेश हो जाना बंध है । स शब्द यों कह रहा है कि वह पूद्गल और आत्मा का श्लेष हो जाना ही बंध है, अन्य कोई केवल संयोग हो जाना अथवा अपने (आत्माके) विशेष गुण हो रहे अदृष्ट का समवाय हो जाना बंध नहीं हैं। यदि गण और गुणोका बंध होने लगे जो कि परतन्त्रता का कारण है,तब तो मोक्ष नहीं हो सकेगी। कारण कि
गुणी अपने गुण स्वभावोंको कभी नहीं छोडेगा स्वभावों · का ही त्याग हो जाने लगे तब तो । गणी का भी अभाव हो जायगा, ऐसी दशामे मोक्ष किसकी हो सकेगी। अतः आत्मद्रव्य का
अन्यविजातीय पुद्गल द्रव्यके साथ एकत्व बुद्धिजनक संबंध हो जाना ही बंध है, यह इसका तात्पर्य अर्थ निकलता है । जिसप्रकार गीले या भीजे वस्त्रमे यहाँ वहाँकी धूल चुपट जाती है अथवा जलवाले पात्रमे कतिपय पदार्थोंके सडाने से आसव, अर्क बन जाते हैं, उसी प्रकार कषाय परिणामोंद्वारा गीले किये जा चुके जीव मे कर्मपरिणतिके योग्य हो रहीं कार्मण