Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 7
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थश्लोकवातिकालंकारे
को मूर्तिसहितपनेकी प्रसिद्धी है, अन्यथा यानी आत्माको अमूर्त या अन्य प्रकारोंसे स्वीकार करनेपर बंध हो जानेका अयोग होजायेगा । जैसे कि अमूर्त आकाश किसी परद्रव्यके साथ नहीं बंधता है। अग्नि, शस्त्राघात, विषप्रयोग आदि से नहीं सताया जाता है, उसी प्रकार - अमूर्त आत्मा का संसारबधन कथमपि नहीं हो सकेगा। यद्यपि अमूर्त आकाश सभी मूर्त, अमूर्त द्रव्यों के अवगाह देनेमे और अमूर्त कालाणुयें सबकी वर्तना करानेमे या अनेक विलक्षण कार्यों के कराने मे कारण हो रहे जैनसिद्धांत के अनुसार माने गये हैं, तथापि आत्माकी परद्रव्य के साथ बंध कर हो रही तृतीय अवस्था स्वरूप विभाव परिणति तो अमूर्त द्रव्यों से नहीं हो सकती है, मात्र इतने में कालद्रव्य को दृष्टांत समझ लिया जाय, अथवा वैशेषिकों के सिद्धान्त अनुसार उक्त निदर्शन समुचित ही है। उन्हों ने आकाश, दिशा आदि के उपर कालद्रव्य द्वारा किया गया कोई अनुग्रह या उपघात स्वीकार नहीं किया है "जन्यानां जनकः काल:" जैनों के यहां भी आकाश या अमूर्त सिद्ध आत्माओं के ऊपर कालद्रव्यका कोई अनुग्रह, उपघात नहीं माना गया है। हाँ मूर्त, अमूर्त द्रव्योंकी अन्य परिणतियों का उदासीन तया कारण तो कालद्रव्य है ही, इसका कौन जैनसिद्धांतज्ञ विद्वान् निषेध कर सकता है।
आदत्त इति प्रतिज्ञातोपसंहारार्थ । तथाहि-यो यः शुभाशुभफलदायिद्रव्ययोग्यान पुद्गलानादत्त स सकषायो यथा तादशः स सकर्मणा योग्यान पुद्गलानादत्त यथोभयवादि प्रसिद्धः शुभाशुभफलग्रासादि पुद्गलादायी रक्तो द्विष्टो वा सकषायाश्च विवादापन्नः संसारी तस्मात् कर्मणो योग्यान पुद्गलानादत्त इति प्रतिज्ञातोपसंहारः प्रतिपत्तव्यः। अतस्तदुपश्लेषोबधः तद्भावो मदिरापरिणामवत् ।
सूत्रमे "आदत्ते" यह क्रियापद तो प्रतिज्ञा किये जा चुके विषय का उपसंहार करने के लिये कहा गया है, उसी को स्पष्ट कर ग्रन्थकार कहते हैं कि जो जो जीव शुभ अशुभ फलों को देनेवाले कर्मद्रव्यों के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करता है, वह बह कषायसहित होता है, जैसे कि तिस प्रकार का सुख, दुःख भोग रहा क्रोधी, मानी, संसारी जीव है, (प्रथम व्याप्ति) । और जो जो सकषाय है वह वह शुभाशुभ फलप्रदायक कर्मोंके योग्य पुद्गलों का ग्रहण कर रहा है, जैसे कि हम जैन और तुम नैयायिक आदि दोनो वादी प्रतिवादी?के यहां प्रसिद्ध हो रहा शुभाशुभ फलवाले ग्रास, चूंट आदि पुद्गलोंका ग्रहण कर रहा रागी अथवा द्वषी पुरुष है ( मुख्यव्याप्तिपूर्वक दृष्टांत ), कषायोंसे सहित हो रहा यह