Book Title: Tattvartha raj Varttikalankara
Author(s): Gajadharlal Jain, Makkhanlal Shastri
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
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त०रा०
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अर्थ-जिसप्रकार धोती कपडा कंबल सफेद हैं किन्तु जिस समय उन्हें नील रंग में रंग दिया जाता है उससमय नील द्रव्यके संबध से वे नीले कहे जाते हैं उसी प्रकार उष्ण गुण भी अग्निसे जुदा हैं किन्तु समवाय संबंध से अग्निमें वह रहता है इसलिये उसीसे 'अग्नि उष्ण है' यह व्यवहार होता है । उसही प्रकार ज्ञान गुण भी आत्मासे जुदा है किन्तु समवाय संबंधसे वह आत्मामें रहता है इसलिये ज्ञान गुण से | आत्मा ज्ञानी है यह व्यवहार होता है ? ऐसी आशंका भी ठीक नहीं। संबंधसे पहिले जो पदार्थ सिद्ध | हों उनका तो संबंध हो सकता है किन्तु जो पदार्थ असिद्ध है । जुदे २ कभी रह ही नही सकते, उनका | संबंध नही हो सकता जिस तरह दंड और पुरुष के संबंध से दंडी व्यवहार होता है यहांपर जब तक पुरुषके साथ दंडका संबंध नही हुआ है उसके पहले ही पुरुष अपने जाति गुण आदि लक्षणोंसे प्रसिद्ध है दंड भी संबंध के पहिले गोल लंबाई आदि लक्षणोंसे प्रसिद्ध है इसलिये दोनों पदार्थोंकी जुदी जुदी | सत्ता सिद्ध रहने से दंड और पुरुषका संयोग संबंध इष्ट है और वह पुरुष, दंड संयोग के रहनेसे दंडी है। यह व्यवहार ठीक है । उसी प्रकार घोती कपडा कंबल आदि पदार्थों के साथ जब तक नीलका संबंध नही हुआ है उसके पहिले नील पदार्थ की सत्ता सिद्ध है और संबंधसे पहिले धोती कपडा आदि पदार्थों की भी सत्ता मौजूद है इसलिये घोती आदि नीले हैं यह व्यवहार भी ठीक है परन्तु अग्नि के साथ उष्ण गुणके संबंध के पहले न तो कोई अग्निका ऐसा विशेष गुण अग्नि से भिन्न सिद्ध है जो उसकी सचा सिद्ध कर सके और न कोई उष्ण गुणका ही आधार प्रसिद्ध है जिससे उष्ण गुणकी सत्ता सिद्ध हो सके क्योंकि गुण किसी न किसीके आधार रहते हैं बिना आधारके उनकी सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती, उष्ण भी गुण है, इसलिये विना किसी आधारसे उसकी भी सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती तथा जो पदार्थ जुदे जुदे सिद्ध
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भाषा
C
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