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36 :: तत्त्वार्थसार
साधक हमारे शिक्षागुरु आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर जी महाराज के परम उपकार को पुण्य स्मरण बनाने हेतु हमने इसका नाम धर्मश्रुतज्ञान हिन्दी टीका किया है।
इस हिन्दी टीका में प्रयुक्त सामग्री को सन् 1919 की तत्त्वार्थसार की टीका एवं सन् 1970 में प्रकाशित पं. पन्नालाल साहित्याचार्य, सागर की प्रस्तावना एवं अनुवाद से सम्पुष्ट किया है। इसके अलावा जिन जैनाचार्यों के ग्रन्थ एवं टीकाओं की सामग्री का उपयोग हमने इस महान कार्य में किया है, उन सभी का हमारे ऊपर उपकार है, हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं।
माँ जिनवाणी के अनन्य उपकार को भुलाना कृतघ्नता होगी। जो माँ हमारी लेखनी-जिह्वा एवं बुद्धि में सतत विराजमान रहकर हमारा मार्ग प्रशस्त करती है, उस अनेकान्त मूर्ति जिनवाणी माँ को हमारे अनन्त नमस्कार स्वीकृत हों।
एक कार्य की सफलता में अनेक सहयोगी कारण होते हैं। इस टीका को निर्विघ्न रूप से लिखने का श्रेय संघस्थ सभी त्यागी साधुवृन्दों को है, जिन्होंने हर तरह से अनुकूलता देकर हमें समय का मानसिक सहयोग दिया। हमारे साहित्य प्रकाशक चन्द्रा कापी हाऊस आगरा (उ.प्र.) साहित्य संरक्षण में सहयोग देते रहे हैं। इसके अलावा जो इस ग्रन्थ को टीका को अपना अमूल्य द्रव्य देकर वितरण करने का सद्भाव रखते हैं, ऐसे समस्त श्रद्धालु संघ सेवक जिनवाणी आराधकों को अनन्त अनुग्रहाशीष स्वीकार हों। इस हिन्दी-टीका के करने में प्रमाद-अज्ञानादि के द्वारा जो भूलें हुई हों, विज्ञजन क्षमा करें।
अनगार मुनि अमितसागर 8 जुलाई, 2009 वीरशासन जयन्ती सहारनपुर
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