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( २२ ) शाह के सम सामायिक थे उनके और दूसरे परिशिष्ट में लौंका गच्छीय यति भानुचन्द्र (वि. सं. १५७८ ) और लौका गच्छीय पति कैशवजी (विसं १६०० के आसपास) इन दोनों के प्रन्थ मुद्रित हैं । तथा तीसरे परिशिष्ट में लौकामत के सैकड़ों विद्वान साधु तथा स्थानकमार्गी अनेक साधुओं ने अपना मत को कल्पित व प्रमाणशन्य समझ कर उसको छोड़ २ कर मूर्तिपूजक साधु बने हैं उनके चित्र मय प्रमाण के दिये हैं।
अब अत में यही लिख कर इस पकथन को समाप्त कर देता हूँ कि वांचक महाशय इस पुस्तक को पढ़ कर खूब लाम उठा। तथा सत्यपथ की ओर अग्रसर हों। यही शुभेच्छा पूर्वक इसको पूरा करता हूँ। वि० सं० १९६३ । कार्तिक शुक्ल १
दर्शनविजय . अजमेर
नावजय
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