________________
समय
GANGANAGARRASSIFIERIORRENS
आवे है ताका नाम व्यवहारनय है। अर जिस क्षणमें एक चेतना शक्तिका विचार करिये तब नव तत्वमें 5 मिल्याहुवा ये जीव अलख अभेदरूप दीखे है वा कहनेमें आवे है ताका नाम शुद्धनिश्चयनय है ॥८॥s
.. ..... ॥ पुनः जीवद्रव्य व्यवस्था वनवारी दृष्टात ॥ ३१ ॥ सा-. जैसे बनवारीमें कुधातुके मिलाप हेम, नानाभांति भयो पै तथापि एक नाम है ॥ कसीके कसोटी लीक निरखे सराफ ताहि, वांनके प्रमाणकरि लेतु देतु दाम है। तैसेही अनादि पुदगलसौ संजोगी जीव, नव तत्वरूपमें अरूपी महा धाम है। दीसे अनुमानसौ उद्योतवान ठौरठौर, दूसरो न और एक आतमाही राम है ॥९॥ अर्थ-जैसे सुवर्ण कुधातुके मिलापते अग्नीके तावरूप वानेमें नानाप्रकार होय है तोहूं नाम एक सुवर्ण ही है । अर कसोटी ऊपर कसिकरि सराफ लीककू देखे तब जैसा अग्निमें वान लागिकरि शुद्ध 5 भया होय तिस प्रमाणकरि दाम देवे अथवा लेवे है । तैसेही अनादि कालका पुद्गलके संयोगते जीव 5 नव तत्वमे मिला है परंतु अरूपी महा तेजवंत है। अनुमान प्रमाणसो देखिये तो पुद्गल, आश्रव,
बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप, इत्यादि समस्तमें ठोर ठोर ज्ञानरूप उद्योतवान एक आत्माराम * ही है और दुसरा द्रव्य उद्योतवान अर चेतनवान नही है ॥ ९॥ .
॥'अव अनुभव व्यवस्था सूर्यदृष्टांत ॥ सवैया ३१ सा ॥' 'जैसे रवि मंडलके उदै महि मंडलमें, आतम अटल तम पटल विलातु है ॥
तैसे परमातमको अनुभौ रहत जोलो, तोलो कहुं दुविधान कहुं पक्षपात है ॥ नयको न लेस परमाणको न परवेस, निक्षेपके वंसको विध्वंस होत जातु है। जेजे वस्तु साधक है तेऊ तहां बाधक है, बाकी रागद्वेषकी दशाकी-कोन बातु है॥ १०॥
॥१२॥