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पंचद्रव्य नवतत्व न्यारे जीव न्यारो लखे, सम्यक दरस यह और न गहत है ।
सम्यक दरस जोई आतम सरूप सोइ, मेरे घट प्रगटो बनारसी कहत है ॥ ७॥ अर्थ-शुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षाते एकलो आप चिदानंदमई आत्मा आपनेही गुणको अर पर्यायको ( गुणके परिणमनको) ग्रहण करेहै । ऐसा यो परिपूर्ण विज्ञानघन आत्मा है, सो व्यवहारते ।
नव तत्वमें अर पंच द्रव्यमें एकसा हो रह्या है। पंच द्रव्य अर नव तत्व ये न्यारे है अर जीव (आत्मा) हिन्यारा है ऐसा जो श्रद्धान करना सो सम्यक्दर्शन है और कोऊ उपाय सम्यकदर्शन ग्रहण करनेको है| नही है । अर जो सम्यग्दर्शन है सो आत्मस्वरूप है, सोही आत्मस्वरूप मेरे घटमें (हृदयमें) प्रगट भया है ऐसे बनारसीदास कहत है ॥ ७॥
॥ अव जीवद्रव्य व्यवस्था अग्निदृष्टांत ॥ सवैया ३१ साजैसे तृण काप्ट वास आरने इत्यादि और, इंधन अनेक विधि पावकमें दहिये ॥ आकृति विलोकत कहावे आगि नानारूप, दीसे एक दाहक स्वभाव जव गहिये ॥ तैसे नव तत्त्वमें भया है वहु भेषी जीव, शुद्धरूप मिश्रित अशुद्धरूप कहिये ॥
जाहीक्षण चेतना सकतिको विचार कीजे, ताहीक्षण अलख अभेदरूप लहिये ॥ ८॥ __ अर्थ--जैसे तृण, काष्ट, बास, आरने कहिये बनका दूसरा कचरा और अनेक प्रकारके पदार्थ से अग्निसे दग्ध होय है । तब जो वस्तुके आकृतिसे देखिये तदि तो अग्नि नानारूप दीखे हैं, नानारूप कहावे है अर जब दाहक स्वभावकू ग्रहण करिये तब एक अग्निरूप भासे है । तैसे नव तत्वमें नाना भेषरूप जीव भया है अर जीवका शुद्धरूप है सो पर पदार्थसे मिलिनेकरि अशुद्धरूप कहने में ||
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