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भैरूदासजी, चोइटिया जोशीजी शिवचन्दजी, पुरोहितजी शिबनायजी ( लाडजी ), पुरोहितजी श्रीनाथजी, थानवीजी गोरूरामजी, व्यासजी बदरीदासजी, व्यासजी जवानमलजी, स्वर्गीय कल्लाजी शिवदत्तजी के भतीजा व चतुर्भुजजी के पुत्र कल्लाजी वंशीधरजी तथा स्वर्गीय 'बृहत्कावे,' 'विद्याभास्कर', 'पण्डित गुरु', पुरोहितजी कालचन्द्रजी (लाळजी महाराजा ) *इत्यादि इत्यादि अनेकानेक स्वजातीय सज्जनोंने मेरे इस कार्यको पसन्द किया उन सबका भी उपकार मानता हूं । उन में भी जोधपुर निवासी श्रीमान् कल्लाजी नारायणदासजी का विशेष उपकार मानता हूं; क्यों कि इस पुस्तक के प्रकाशित होने में विलम्ब होता देख एक आध बार उन्होंने मुझे कटु वचन भी कहे थे । यह उन्हीं के कटु वचनों का अमृतरूपी भिष्ट फल आज मैं स्वजाति की सेवामें इतनी शीघ्रता से भेंटकर सका हूं । (९) घनकी सहायता स्वीकार न करने का कारण
इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिये कई स्वजातीय सज्जनोंने मुझे घन की सहायता देनी चाही थी । किन्तु यह एक स्वजाति सेवा का बघु कार्य होने से प्रथम ही आवृत्ति में धनकी सहायता लेनी उचित न जानकर मैंने किसी से भी कुछभी लेना स्वीकार नहीं किया । इस के लिये क्षमा माँगता हूँ । (१०) मेरे निःस्वार्थ परिश्रम उठाने का कारण -
मैंने इतना परिश्रम नतो आप लोगों से किसी प्रकारका
* खेद हे कि लालजी महाराज इस पुस्तक के प्रकाशित होनेसे पहिले ही स्वर्ग सिधार गये यदि वे विद्यमान होते तो मुझे 'पुष्करणोत्पत्ति' नामक पुस्तक प्रकाशित करने में भी उत्तेजना मिळती ।
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