________________
१२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
गांधी गोत्र को उत्पत्ति भाटो की विरदावली से पता चलता है कि जालोर शहर मारवाड के चीहान वशीय राजा लाखण सी से भण्डरी और गाधी-मेहता वशो की उत्पत्ति हुई है। लाखणसी जी के ११ वी पीढी वाद पोपसी जी हुए। वे अपने समय के आयुर्वेद के विख्यात ज्ञाता थे । कहा जाता है कि उन्होने सवत् १३३८ मे जालोर के रावल सावतसिंह जी को एक अमाध्य व्याधि से मुक्त किया । उक्त रावलजी ने प्रसन्न होकर उन्हे "गाघी" की महान् उपाधि से विभूपित किया।"
__ (ओसवाल जाति का इतिहास मे से उद्धृत)
___ सच्ची गृहिणी घर का शृगार - इसी नगर मे श्रीमान् 'मोडीराम जी' गाधी तथा आपकी धर्म पत्नी श्रीमती 'दाखावाई सुख पूर्वक दाम्पत्य जीवन यापन कर रहे थे। उनका यह समार पति धर्म, पत्नी धर्म एव पारिवारिक धर्म को लेकर वास्तविक मर्यादा का पालन तथा धर्म-स्नेह, सौजन्यता एव चैतन्य का जिन्दा-जागतागूजता सुभव्य मन्दिर था। जैसा कि- "जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना" भले इस दाम्पत्य जीवन मे पार्थिव धन राशि विपुल मात्रा मे न रही हो। परन्तु भावात्मक सम्पत्ति का इस घर मे साम्राज्य छाया हुआ था--जैसा कि
जहां पति पत्नी दोनो, मिलके रहते हैं।
वहां शरने सदा ससार मे, खुशी के बहते हैं ।। सच्ची गृहिणी वही है जो सन्तोप, क्षमा एव सरलता-समता गुण की अनुगामिनी हो । पति द्वारा उपाजित अल्प धन-धान्य मे ही समता पूर्वक घरेलू कारोवार को चलाती हो, शिष्ट-मिष्ट भापिनी एव आजू-बाजू के वायुमडल को सदा-सर्वदा सुखद शान्त सरम-सुन्दर बनाए रखती हो। फैशन शृगार-मौज-शौक की कठपुतली न हो । समय-समय पर पति परमेश्वर को नेक सलाह देती हो व धार्मिक आदि शुभ प्रवृत्ति मे सदैव पति की सहयोगिनी वनकर रहती हो। इस प्रकार अनेकानेक गुणरत्नो से युक्त गृहिणी को ही घर की "लक्ष्मी" यह सुन्दर सज्ञा दी गई है। सौभाग्यवती दाखावाई भी संचमुच ही सौभाग्यशालिनी थी। जिनका जीवन धन निम्न गुण-गरिमा-महिमा से दमक चमक रहा था
कार्येषु मन्त्री करणषु दासी, भोज्येषु माता शयनेषु रभा। धर्मानुफूला क्षमया धरोत्री, षड्गुणवती भार्याश्च दुर्लभा ।"
पुण्यात्मा के शुभ चिन्हकुछ कालान्तर के वाद माता दाखावाई के मन मधुवन मे उत्तमोत्तम भावना के कोमलकमनीय किसलय खिलने लगे-धर्म-ध्यान-दान-दया सामायिक-प्रतिक्रमण अभयदान एव मुनि महासती का दर्शन कर जीवन को धन्य बनाऊँ आदि उपरोक्त ये सब चिन्ह मानो उत्तम भाग्यशाली आत्मा स्वर्गात उदर मे आई हो, इस बात की शुभ सूचना दे रहे थे। कहा भी है
'पुन्यवान गर्भ मे आवे, माता ने लड्ड़ जलेबी खिलावे । साधु-सतियो की सेवा चावे, नित उठने धर्म कमावे ।।'