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१३० मुनिश्री प्रताप अमिनन्दन ग्रन्थ
श्रद्धा से नत है....!
-श्रीचन्द सुराना 'सरस'
श्री प्रताप मुनिवर का मजुल है व्यक्तित्व विशाल,
जिसके प्रति श्रद्धा से नत है विश्व मनुज का भाल । जैनधर्म मे नही जन्म का, किन्तु कर्म का स्थान, अपने प्रवल पराक्रम से बनता मानव भगवान । साधारण से सत असाधारण तुम बने महान्, वने विंदु से सिंधु, वीज से शतगाखी फलवान । अभिनन्दन हे सत ! धरा पर जीओ तुम चिरकाल। श्री प्रताप मुनिवर का मजुल है व्यक्तित्व विशाल ।
विद्या, विनय, विवेक विमलता जीवन मे साकार, शुचिता, सत्य, सरलता मन की निर्मल है आचार ! प्रतिपल प्रतिपद प्रतिभा का आलोक धरापर निखरे, अन्तर की निर्वेद-सुधा का रस धरती पर प्रसरे ! ज्योतिर्मय हो बनो शतायु । वरो, विजय वरमाल,
श्री प्रताप मुनिवर का मजुल है व्यक्तित्व विशाल ! जल प्रवाह की भाँति तुम्हारा जीवन है गतिमान । दीपक की ज्यो जन-हित जलकर रहता ज्योतिर्मान । श्रेष्ठ-सुमन की भाति विश्व को करता सोरभ दान । दिनकर की व्यो अग-जग मे तुम लाते स्वर्ण विहान । गमक रहा, समता-उपवन मे शम-रस भरा रसाल । श्री प्रताप मुनिवर का मजुल है व्यक्तित्व विशा।
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