Book Title: Pratapmuni Abhinandan Granth
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Kesar Kastur Swadhyaya Samiti

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Page 183
________________ भगवान महावीर के चार सिद्धान्त Himom जीवन में अहिंसा । विचारों में अनेकान्त । वाणी में स्याद्वाद । समाज मे अपरिग्रहवाद । गुरप्रवर फा यह प्रेरक प्रवचन एक मौलिक महत्व रखता है । भाव गांभीर्य मय यह प्रवचन सचमुच ही वर्तमान युगीन सामाजिक उलझी गुत्थियो को सुलझाने में सक्षम है । हां, यदि भगवान महावीर प्रदत्त देशना को सही तौर-तरीके से मानव निज जीवन में उतारने का प्रयत्न करें, उस पर चलने मे तत्पर हो तो नि संदेह उभरे हुए वातावरण मे आशातीत राहत मिल सकती है। महावीर जयती के मगल प्रमात मे जावरा की विशाल मानव मेदिनी के समक्ष दिया गया प्रबधनाश जो पाठकगण के हितायं यहां अपित किया गया है सपादक 'प्यारे सज्जनो। अहिसा के प्रतिष्ठापक भ० महावीर उस युग के अलिम तीर्थकर हुए हैं। विक्रम में लगभग चार नौ सत्तर वर्ष पूर्व माता त्रिशला को कुलीन कुक्षि से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की रात्रि को 'कुण्डलपुर' नामक नगर मे वरम तीर्यकर भ० महावीर का जन्म कल्याणोत्मव सम्पन्न हुआ था। पुत्ररत्न के शुभागमन पर सम्राट् निद्धाय ने करोडा का दान-पुण्य किया एव हर्पोद्घोप से जगतीतल को भर दिया था। पूर्वस्थिति · सिंहावलोकन भगवान् महावीर के जन्म के समय समाज की स्थिति बहुत ही विपम थी। मानव जीवन मे मर्वत्र छुआछूत, स्वार्थ परायणता व हिंसा का माम्राज्य व्याप्त था। उस समय निम्न सिद्धान्त मानव समाज में गहरी जडे जमाये बैठा था "जीवो जीवस्य भक्षणम्" अर्थात् यह पाखण्ड धर्म के नाम पर जोर-शोर से चल रहा था। फलस्वरूप जो धर्म प्राणी मात्र के सुख-शाति और उद्धार के लिए माना जाता था वही हिमा-हत्या विपमता एव अगांति का अस्त्र बना हुआ था। होनेवाली हिमा और व्याप्त विपमता से भगवान महावीर अहर्निश चिंतित रहते थे । करुणा-पूरित उनका अन्तहृदय मूक प्राणियो की दुर्दशा पर नवनीत सदृश द्रवित हो जाता था । वे मानव समाज के लिए ही नहीं, अपितु प्राणी मात्र के लिए अहिंसा की पुन प्रतिष्ठा करना चाहते थे। सभी अपने-अपने क्षेत्रो मे समान है, सभी को एक ममान जीने का अधिकार है । फिर विपमता की विप वल्लिका समाज के वीच क्यो पनप रही है ? वस्तुत भ० महावीर चाहते थे—यत्र तत्र ऊँच-नीच की इति श्री हो और वहां सर्वोदय का नारा बुलद होवे एव प्रत्येक नर-नारी समाजवाद को समझे और कार्यान्वित करें। इस कारण परमोपकारी तीर्थकर ने मानव हितार्य मुख्य चार सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं । जो जैन धर्म की मुदृढ नीव कही जा सकती है । जिस पर जैनागम का भव्य वृक्ष पल्लवित-पुष्पित हो रहा

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