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चतुर्थ खण्ड धर्म, दर्शन एवं संस्कृति समाज और नारी | २४६
की भी उन्नति न कर सका वही स्थिति आज के स्वतत्र भारत की हो सकती है। आज हम स्वतत्रता प्राप्ति के २५ वर्ष बाद भी अपनी आर्थिक स्थिति नही सुधार सके । कारण कि वर्षों की गुलाम एव आर्थिक परिस्थितियां । श्री राष्ट्रीय कवि गुप्त ने अपनी इन पक्तियो मे नारी को असहाय दयनीय अवस्था में माना है।
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।
आचल मे है दूध और मांखो मे पानी ॥ ___ तथा महान् व्यक्ति के द्वारा यह भी कहा जाता है कि-पुरुष-नारी का खिलौना है । लेकिन नारी स्वय उसके खेलने मात्र का उपकरण नहीं है। अत नारियो का कर्तव्य है कि अपनी परिथिति मे सुधार करें एव उसमे लज्जा, करुणा, नम्रता एव शील को अपनाएं । अपने अन्दर प्रेम एकता सगठन की भावना की ज्योति प्रज्जलित करे एव आदर्शों को अपनाए, तभी देश समाज परिवार मे अपनी प्रतिष्ठा कायम कर सकेगी। और तभी वह देश समाज एव नई पीढी मे सुधार कर सकती है । नारियो का प्रमुख यह उद्देश्य होना चाहिए कि आदर्शों एव गुणो को स्वय अपनाए और आने वाली नव-पीढियो को उन आदर्शों को सिखलाए एव उनको अपने जीवन मे अपनाने के लिए उत्साहित एव सही मार्गदर्शन दें। ताकि वह देश, समाज धर्म एव परिवार को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने में योगदान दे सके अत इसमे यही निष्कर्ष निकलता है कि-अगर नारीजगत को अपनी प्रतिष्ठा कायम करना है, व अपने राष्ट्र, समाज एव धार्मिकक्षेत्र की उन्नति करना है तो वह सर्व प्रथम अपने आप मे सुधार करें एव आदर्श आदि को अपनाए ताकि उसे समानता का अधिकार प्राप्त हो एव अपने-अपने आने वाली नव पीढी का भविष्य सुन्दर एव ज्योर्तिमय हो ।