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२४८ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ आदर्शों का रूप प्रगट करती है । झासी की रानी, सरोजनी नायडू, एनीवेसेन्ट, सीता, चन्दन वाला राजुल आदि । एक अग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक मे नारियो के बारे में यह लिखा है एक स्थान पर कि
"जो नारी पालना झुलाती है, वह शासन भी कर सकती है।" उक्त कथन आज भी तीन देशो पर लागू होता है । वह है भारत, इजराइल एव लका । अगर हम प्राचीन ग्रन्यो एवम् धार्मिक सिद्धान्तो, रिवाजो का अध्ययन करे तो हमे पता चलता है कि प्राचीन समय मे ही नारियो को समान अधिकार दिये गये हैं। भ० महावीर ने भी अपने चतुर्विध सघ का निर्माण के समय नारियो को पुरुपो के समान ही मानकर वरावरी के अधिकार दिये हैं। भारतीय सविधान में भी नारियो को समानता का अधिकार मिला है। इस प्रश्न पर हम विचार करें तो स्पष्ट हो जाता है कि मानवता की अमर वेल नारियो के द्वारा ही फलती-फूलती है और विकसित होती है। अत नारियो का सुशिक्षित एव सुसस्कृत होना अत्यन्त आवश्यक है तथा वच्चो मे भी अच्छे सस्कार एवम् चारित्रिक उत्थान सभव है। अगर जिस देश की नई पीढी सुरक्षित एवम् सुसस्कारमय होगी तो उस राष्ट्र, धर्म एव समाज की उन्नति अवश्य ही चरम सीमा पर होगी । मगर जिस देश व समाज की नारियाँ ही सुशिक्षित एव सुसस्कृता न होगी तो उस समाज के वालको मे अच्छे संस्कार एवम् सभ्यता कहां से होगी । और वह समाज कमे उन्नतिशील बनेगा । अत उस समाज एव राष्ट्र का भविप्य अन्धकार मय होगा अत नारियो का सुशिक्षित होना आवश्यक है ।
आज नारियो की जो स्थिति है चह विचारणीय है। आजकल भारतवर्ष में नारी वर्ग की अविकाश सदस्यो ने शिक्षा के क्षेत्र मे उन्नति अवश्य करी व कर रही है। मगर साथ ही अपनी भापा सभ्यता एव सस्कृति की सीमा को छोडकर पश्चिम सभ्यता एव सस्कृति को अपना कर अपने आप को गौरवशाली मानती है । अगर यह कहा जाय तो अनुचित होगा कि आजकल नारी समाज ने अपनी शैक्षणिक क्षेत्र मे उनति तो अवश्य को है, मगर वह दूसरी ओर चारित्रिक हत्या के क्षेत्र मे अवनति के मार्ग का भी अनुकरण कर रही है । एक समय वह था कि भारतवर्ष अपनी अपनी सभ्यता, मस्कृति एवम् दृढता के लिए प्रसिद्धि को चरमोत्कृप्ट शिसर पर थे अगर भविष्य में भी यही स्थिति रही तो एक समय वह भी आ सकता है जब भारतवर्ष मे जो उन्नत सस्कृति थी वह इतिहास के पृष्ठो तक सीमित रह जायगी और आने वाली भावी पीढियां यह भी न जानेंगी कि हमारा धर्म क्या था, हमारी सभ्यता सस्कृति क्या थी हमारे समाज के आदर्श नियम क्या थे?
नारी जगत इन सम्पूर्ण स्थिति का अवलोकन एव अहम प्रश्नो पर विचार करें उनके आदर्श नियमो को अपनाये व उसके अनुरूप अपने को ढाल सके तो वह अवश्य ही राष्ट्र, समाज धर्म एव परिवार की उन्नति मे महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकती है । इसके लिए सर्व प्रथम उसे अपने अन्दर प्रेम व एकता की भावना को जागृत करना होगा । शैक्षणिक उन्नति के साथ-साथ चारित्रिक दृढता भी कायम करना होगा । अत नारियो का कर्तव्य है कि वह अपने अन्दर एकता की ज्योति निर्माण करे एव अपनी सभ्यता, सस्कृति को अपनाकर अपने जीवन को उन्नत बनाये ताकि भावी पीढी सुशिक्षित, सुसस्कारमय, प्रेम, सहयोग, सेवा, मैत्री पूर्ण सद्भावना आदि गुणो से युक्त होगी तभी राष्ट्र और समाज, धर्म एव परिवार की उन्नति मे सहायक हो सकती है। वर्ना देश की भावी पीढी गुणो से युक्त न होगी, और समाज धर्म परिवार की व्यवस्था मे कुशल न होगी । एव जो भारतवर्ष वर्षों तक गुलाम रहने के साथ आर्थिक स्थिति