Book Title: Pratapmuni Abhinandan Granth
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Kesar Kastur Swadhyaya Samiti

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Page 279
________________ समाज और नारी -राजल कुमारी जैन स्वतन्त्रता प्राप्ति के २५ वर्षों में नारी शिक्षा के क्षेत्र में जितनी उन्नति हुई उतना ही मानव का चारित्रिक स्तर तेजी से पतन की ओर पहुच रहा है । होना तो यह चाहिए था कि शैक्षणिक उन्नति भी विकासोन्मुसी हो, लेकिन हुआ इसके विपरीत ही । आज नारी घर की चाहरदीवारी को अवश्य ही लाघ कर जीवन और राष्ट्र के हर क्षेत्र में पुस्प से कन्धे से कन्धे मिलाते हुए खडी है। हर पुरुप को चारित्रिक विकासोन्मुखी होने के लिए सहारा देती वह स्वय ही विक्षिप्त सी वनी अपने चरित्र को ही खो बैठी है। दूसरी ओर समाज का मूल रूप नही है । ज्यादा एकता, सगठन, प्रेम, मैत्री पूर्ण व्यवहार एवम् एक दूसरे के प्रति मद्भावना हो लेकिन आज हम देखते है कि समाज मे न एकता, न सगठन न प्रेम न सद्भावना एव न मंत्री पूर्ण व्यवहार है । आज समाज मे एक दूसरे के प्रति विद्रोही भावना, ढेप पूर्ण व्यवहार आदि अनेक बातें प्रचलित हैं। यहां यह प्रश्न विचारणीय है कि-इसका मूल कारण क्या है ? कमे ममाज उन्नत होकर विकासशील हो आदि अनेक प्रश्न है ? मानव जीवन की शुरुआत सर्व प्रथम घर एव परिवार से होती है। जो कि मानव के लिए सर्वप्रथम पाठशाला का स्वरूप प्रदान होती है । मानव इसी पाठशाला से प्रारम्भिक ज्ञान या व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर बाहर समाज मे निकलते है यहाँ मर्व प्रथम शिक्षक के रूप नारी का ही योगदान है। वह होती है मां, जो कि सन्तान को जन्म ही नही देती वर्ना उसके आचार-विचार सस्कार भावनाएं आदि का सम्बन्ध सन्तान के रक्त के साथ सचार होता रहता है । यही गुण आगे जाकर सन्तानो मे विकसित हो जाते हैं । यदि मानव सन्निकटता से इन सिद्धान्तो का अध्ययन करे तो स्पष्ट पता चल जायगा कि माता पिता के गुण वालक में मौजूद होगे, जो इसके जन्मदाता मे है । अगर सन्तान को कुछ न सिखाया जाय तो वह गुण उसकी सन्तान मे पाये जाते है । जैमा वालक को व्यवहार पारिवारिक वातावरण से मिलेगा उमी अनुसार बालक अपने आपको योग्य बनाएगा । इसलिए चारित्रिक उत्थान मे नारी जितनी सहायक हो सकती है उतना पुरुप नही । माना कि पुरुप शक्तिशाली है उस शक्ति का केन्द्र स्थल नारी ही है। नारी मे वह गुण मौजूद है जिसके द्वारा वह अपनी सन्तान को विकासशील एव योग्य बना सकती है। दूमरी ओर वह उसे कुमार्ग का पथिक एवम् अयोग्य भी बना सकती है। कहीं-कही यह कहा है कि ___ "काटो से भरी शासाओ को जिस प्रकार फूल सुन्दर बना सकता है। नारी उसी प्रकार गरीव घर के आगन को सुन्दर बना सकती है।" लेकिन यह बहुत कम देखने को मिलता है कि-जहाँ यह कथन चरितार्थ होता है वहा हम महान पुरुपो की जीवनी इतिहास के पृष्ठो मे प्राचीन ग्रन्यो का अव्ययन करें तो हमे पता चलेगा कि महान पुरुपो के जीवन को उत्कृष्ट बनाने मे किसी न किसी नारी का अवश्य योगदान रहा है । जैमे शिवाजी को अपनी माँ, भीष्म पितामह को उनकी वीमाता, रथनेमि का राजुल अनेको नारियां उल्लेखनीय है । जिसके कारण महान् पुरुपो के जीवन को उत्कृष्ट वनाने में सहायक रही एवम् ऐसी अनेको नारिया उल्लेखनीय है जो राष्ट्र, समाज धर्म की उन्नति एव नारी

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