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२८६ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
कवित्त-कवेमरा ग नामा गेचौमुह चोरा चड जगत ईश्वर गुण जाणे, करमानद अरकोल, मलू अवखर परमाणे । माधौ मुथराराम, नाम माडल निज ग्रीदादूदा नारणदान, साथ जीननद मीमा । चौरासी रूपक नरहर, चरण वरण वाणि जुजुवा चारण सरण चारण भगत,
हरिगायव रहता हुवा ॥ इये कवित्तमायला कई भक्त कविया ग उरलेव तो डा० मोहनलाल जिनानु रे "चारिणी माहिल्य रे इतिहास, में हुयो है, पण केई नाम मे इसा भी है जिका गे बे में उल्लेन कोनी जिस तरह चौमुह, कोल, नाग्वदास, चागे शायद पडोसी, जिकोमाधोदास रो पिता हो ।'
राजस्थानी रो भक्तिसाहित्य घणो विशाल और ििवध प्रकार गे है। कई तो बटा वडा काव्य है केई छोटा-छोटा सुन्दर गीत है, कई राम, केई कृष्ण कई महादेव कई द्वारा देवि देवता तथा लोक देवता सवधी है । जिके ने जिवेरी इप्ट हुयी कई परची व चमत्तार मित्यो वो वे देविदेवतारो भगत हुयगयो, वा देवी देवता रा मन्दिर वणाया गया, पूजा शुर हुई, पण भक्ति गीत गाइजण लाग गया, माधवदास रो राम रासो पृथ्वीदाम री कृष्ण म्खमणि वेलि कवि किशने री वणायोगी महादेव पार्वती बेलि, कवि कुशललाभ और लघगज रे रचौटा देवीचरित और वहुतमा देवी देवता ग घ्द भातभात रे भवित साहित्य रा आच्छा नमूना है ।
श्रीमद् भागवत् भक्ति प्रधान ऐक बडो प्रसिद्ध पुगण प्रथ है। जिकेग गजन्यानी मे गद्य और पद्य में कई अनुवाद हुआ, इसी तरह और भी बहुतसा पुगणा भक्ति प्रथारा राजस्थानी में अनुवाद किया गया है । फुटकर हरजम तो हजागरी सस्या में मिले है और गाइजे, भक्ति राजस्थानी न जीवन मे इसी घुल मिलगी कि थोडी घणी मिगला ही बेरे रग मे रगीजगया, कोई केरो ही भक्त वण गयो कोई दूसरे कोई रो, पण भक्ति प्राय मगला लोग ही केईन केई री करता ही मिले, गाव-गाद और नगर-नगर मे कोई न कोई देवी देवता गे छोटो मोटो मन्दिर जरूर मिल जावे, कई भति मप्रदाय भी राजस्थान मे ख़ब पनपया और सत कविया मे ही कई भक्त हुया, पर वारे रचनारी भापा हिन्दी प्रधान हुणे सू अठे वारो जिकर को कियो गयो नी, इये छोटे से निव-ध में इणा घणा भन्त कविया री चर्चा कर सतोप मानणो पड्यो है और उदाहरण तो बहुत ही कम दिया जा सका गया आशा है ऐमू प्रेरणालेयर राजस्थानी भक्ति माहित्य री आच्छी तरह खोज की जाती, और चुनीडा कविया री आच्छी २ रचनाओ रामग्रह आलोचना महित प्रकाशित किया जामी ।