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२१४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
उदेनवत्यु मे प्रद्योत के एक द्रुतगामी रथ का वर्णन है। भद्रावती नाम की हथिनी कक्का (पाली मे काका) नामक दास, दो घोडिया-चेलक्ठी, और मजुकेशी एव नाला गिरी नामक हाथी ये पाचो मिलकर उस रथ को खीचते थे।
धम्मपद के टीकाकार ने लिखा है कि प्रद्योत किसी भी सिद्धान्त को मानने वाला नही था' उमका कर्म फल पर विश्वास नहीं था । आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि वह स्त्री-लोलुपी और प्रचण्ड था ।' पुराणकार ने उसके लिए नयवजित शब्द का प्रयोग किया है ।१२।
___ जैन कथा साहित्य मे स्पष्ट वर्णन है कि चण्डप्रद्योत ने स्वर्णगुलिका दासी के लिए सिन्धु मीवीर के राजा उदायन के साथ महारानी मृगावती के लिए वत्स नरेश शतानीक को माथ । ४ 'द्विमुख'अवभासक' मकट के लिए पाचाल नरेश राजा दुम्मह के माथ ।१५ राजा श्रेणिक के बढते हए प्रभाव को न सह सकने के कारण मगध राज श्रेणिक १६ के साथ उसने युद्ध किया । ये सारे घटना प्रसग बहुत ही आकर्पक है । विस्तार भय से हमने उनको यहां उट्ट किंत नही किया है, जिज्ञासुओ को मूल ग्रन्थ देखने चाहिए।
वत्म देश के राजा शतानीक और चण्डप्रद्योत का युद्ध हुआ वह जैन१७ और बौद्ध कथानको मे प्राय समान रूप से मिलता है । प्रस्तुत युद्ध का कथा सरित्सागर आदि मे भी उल्लेख हुआ है। स्वप्नवासवदत्ता नाटक मे महाकवि भास ने उसी कथा-प्रसग को मूल आधार बताया है।
मज्झिम निकाय के अनुसार अजातशत्रु ने चण्ड-प्रद्योत के भय से भयभीत वनकर राजगृह मे क्लिावन्दी की थी।५६ वौद्व माहित्य मे उसके दूसरे युद्धो का उल्लेख नही है।
जैन साहित्य मे चण्ड प्रद्योत के आठ रानियो का उल्लेख आया है। जो कौशाम्बी की रानी मृगावती के साथ भगवान महावीर के पास दीक्षा लेती है२० उममे एक रानी का नाम शिवा देवी है,
६ (क) धम्म पद टीका उज्जयिनी-दर्शन पृ० १२
(ख) उज्जयिनी इन ऐशेट इण्डिया पृ० १५ १० (क) उज्जैनी इन ए शेट इटिया पृ० १३ विमलचरणला
(ख) मध्य भारत का इतिहास प्र० भाग पृ० १७५-१७६ ११ निषष्टि० १०८।१५० व १६८ १२ कथासरित्सागर १३ निपष्टि १०।११-४४५-५६७
(ख) उत्तराध्ययन अ० १८ नेमिचन्द्रकृत वृत्ति
(ग) भरतेश्वर-बाहुबली वृत्ति भाग १, पत्र १७७-१ १४ विपप्टि-१०।११।१८४-२६५ १५ विपप्टि - १०।११।१७२-२६३ १६ उत्तराव्ययन सून अ० ६ नेमिचन्द्रकृत वृत्ति १७ निपप्टि-१०।११।१८४-२६५ १८ धम्मपद्ध अट्ठकथा, २११ १६ मज्जिाम निकाय ३।११८, गोपक मोग्गलान सुत्त २० आवश्यक चूणि